इन अपराधों में नाममात्र का जुर्माना लगाकर छोड़ देता है कोर्ट, आसानी से जुर्म से बाहर आ जाता है अपराधी
भारत में छोटे और बड़े सभी प्रकार के अपराध हैं जिसमें अपराध की गंभीरता को देखते हुए सजा का प्रावधान किया गया है ₹100 से लेकर और फांसी तक सजा का प्रावधान अपराधों के लिए किया गया है
भारत में छोटे और बड़े सभी प्रकार के अपराध हैं जिसमें अपराध की गंभीरता को देखते हुए सजा का प्रावधान किया गया है ₹100 से लेकर और फांसी तक सजा का प्रावधान अपराधों के लिए किया गया है जहां न्यायालयों को छोटे अपराधों में 1 माह से 6 माह तक के लिए कारावास से दंडित सजा देने की शक्ति होती है लेकिन न्यायालय उदारता के साथ छोटे छोटे अपराधों में कारावास की सजा से दंडित न करके नाम मात्र का जुर्माना से दंडित करती है क्योंकि जेलों में अपराधियों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि उनके रखने और देखरेख की व्यवस्था करना मुश्किल हो चुका है जिससे न्यायालय गंभीर अपराधों में ही जेल भेजने की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
उपेक्षा पूर्ण ढंग से गाड़ी चलाना
जैसा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 279 में साग्निक स्थान में मोटर याद चलाने पर या अन्य सवारी लापरवाही करने पर धारा 279 का उपयोग किया जाता है इस धारा में यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को छाती हाले ना हुई हो लेकिन मोटरयान को चलाने वाला व्यक्ति लापरवाही से वाहन यान को चलाता है तो यह अपराध माना गया है और इसी के साथ अगर किसी व्यक्ति को चोट आ जाती है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 337 लागू होती है जिसमें इन दोनों ही अपराधों में न्यायालय अभियुक्तों को जुर्माना से दंडित करके छोड़ देती है।
लेकिन वही अगर किसी अभियोजन पक्ष यानी पीड़ित को किसी भी प्रकार का फैक्चर या अन्य क्षति करित हो जाती है तो 338 लागू होती है जिसमें न्यायालय अभी तो अपराध स्वीकार करने पर केवल जुर्माना से दंडित नहीं करती बल्कि कारावास से दंडित करती है।
सट्टे और जुआ संबंधित अपराध
भारत में जुआ सट्टा खेलना या खिलवाना दोनों ही पूर्ण तरीके से प्रतिबंधित है और इस पर अपराध घोषित कर कारावास के सजा का भी प्रावधान किया गया है जिसमें जुमे को प्रतिबंध करके सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 बनाया गया जिसमें इस अधिनियम के अंतर्गत कहा गया कि जुआ खेलना और खिलवाना दोनों ही कारावास के दंड नी अपराध माना जाएग। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को स्पष्ट कर दिया गया कि इस अधिनियम के अंतर्गत पुलिस द्वारा छापा नहीं मारा जाएगा क्योंकि यह गैर संगे अपराध है इसमें पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 के तहत मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी।
शराब और भाग का सेवन के लिए अपराध
शराब और भाग से संबंधित अपराध राज्य सरकार के अंतर्गत आते हैं जिसमें राज्य सरकार अपने अलग-अलग अधिनियम का निर्माण किया गया है जिसमें सभी राज लगभग सार्वजनिक रूप से शराब पीने पर प्रतिबंध लगा चुकी है जिसमें पुलिस द्वारा यदि ऐसा प्रकरण बनाया जाता है कि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर इसका सेवन करता है तो न्यायालय इसमें जुर्माना करके छोड़ देता है और इस अपराधों में ट्रायल फेस नहीं करना पड़ता क्योंकि अपराध स्वीकार करने के बाद जुर्माने से दंडित करके और छोड़ दिया जाता है ।
इसी तरह भारतीय दंड संहिता के तहत छोटे-छोटे अपराध जैसे गाली गलौज जुमाझपटी और अन्य मामलों में न्यायालय केवल जुर्माना लगाकर अभियुक्त को छोड़ देता है।