भोपाल. निजी या सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीज को इलाज के दौरान क्या-क्या ट्रीटमेंट दिया गया, इसकी पूरी जानकारी दस्तावेजों के साथ मरीज या उनके परिजनों के मांगने पर देनी होगी। मप्र मेडिकल काउंसिल ने एक शिकायत की सुनवाई के बाद ये निर्देश दिए हैं। यदि कोई अस्पताल यह जानकारी नहीं देता है तो इसकी शिकायत काउंसिल में की जा सकती है। ऐसे अस्पतालों पर कार्रवाई होगी।
दमोह के एक मरीज की शिकायत के बाद मप्र मेडिकल काउंसिल ने ये निर्देश जारी किए हैं। अस्पताल में भर्ती मरीज की फाइल बनाई जाती है। रोज दी जाने वाली दवा, डॉक्टरों की सलाह, इंजेक्शन और अन्य जांचों का ब्योरा इसमें दर्ज होता है। डिस्चार्ज होने पर मरीज को सिर्फ डिस्चार्ज लेटर दिया जाता है। इसमें एक-दो लाइन में इलाज का विवरण होता है। साथ ही आगे की दवा लिखी जाती है। इलाज की पूरी फाइल मरीजों को नहीं दी जाती, अब मरीज को पूरे दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे।
नियमों का उल्लंघन पाया
काउंसिल की इथिक्स कम डिसिप्लिनरी कमेटी ने शिकायतकर्ता और डॉक्टरों के जवाब की जांच की। पाया कि मरीज ने 21 मार्च 2022 को दस्तावेज मांगे थे, अस्पताल ने इलाज के रिकॉर्ड 13 अक्टूबर 2023 को दिए। इसे इंडियन मेडिकल काउंसिल (प्रोफेशनल कंडक्ट, एटिकेट एंड इथिक्स) रेगुलेशन 2002 का उल्लंघन माना गया है। काउंसिल ने डॉ. रजनीश और डॉ. निधि मिश्रा को चेतावनी दी कि आगे ऐसी गलती न करें। साथ ही निर्देश दिए कि किसी भी अस्पताल में मरीज या परिजन के इलाज के रिकॉर्ड मांगने पर दिए जाएं।
ये थी शिकायत
दमोह में पथरिया के कार्तिक सिंह राजपूत ने मप्र मेडिकल काउंसिल से शिकायत की थी। कहा था, भाभी पूजा को सीजेरियन डिलेवरी के लिए पांच दिन मकरोनिया के सेवा हॉस्पिटल में भर्ती रखा। डिस्चार्ज के समय अस्पताल संचालक डॉ. रजनीश मिश्रा व डॉ. निधि मिश्रा ने इलाज के दस्तावेज नहीं दिए। पूजा ने इलाज के दस्तावेज मांगे थे।