MP: सरकारी फाइलों में दबा प्रशासनिक ‘नसबंदी’ का कानून

मप्र सरकार द्वारा 24 साल पहले परिवार नियोजन की मंशा से राज्य सिविल सेवा शर्तों में किए गए दो बच्चों के प्रावधान पर प्रशासनिक स्तर पर अमल नहीं किया जा रहा है। नियमानुसार जिनके दो से ज्यादा बच्चे हैं, उन्हें राज्य सरकार में नियुक्ति नहीं मिलेगी। साथ ही 26 जनवरी 2001 के बाद तीसरी संतान पैदा होती है तो नौकरी से बर्खास्त भी किया जाएगा।

लेटलतीफी: जिला कार्यालय से लेकर मंत्रालय तक दबी हैं शिकायतें, 3 बच्चों वाले कर्मचारी दबंगई से कर रहे नौकरी

इसके बावजूद जिला कार्यालयों से लेकर मंत्रालय तक 3 बच्चों वाले कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। मंत्रालय में सामान्य प्रशासन विभाग में ही 2 से ज्यादा संतानों वाले कर्मचारियों की फाइलें दबी हैं। राज्य शासन ने 10 मार्च 2000 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (3) के अनुसरण में मप्र सिविल सेवा (सेवा की सामान्य शर्ते) नियम 1961 के नियम 6 के उप नियम (4) में संशोधन कर अधिसूचना जारी की थी। जिसके तहत जिस कर्मचारी या उम्मीदवार ने विवाह के लिए नियत की आयु (महिला 18 साल पुरूष 21 साल) से पूर्व विवाह कर लिया हो, उसे किसी सेवा या नियुक्ति की पात्रता नहीं होगी।

कोई कर्मचारी या उम्मीदवार जिसकी दो से अधिक जीवित संतान हैं, जिनमें से तीसरी संतान का जन्म 26 जनवरी 2001 को या उसके बाद हुआ है। उसे किसी नौकरी या नियुक्ति की पात्रता नहीं होगी।’ सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था में यह नियम परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए लागू किया था। हालांकि मौजूदा स्थिति इस नियम पर नियुक्ताओं / क्रियान्वयनकर्ताओं द्वारा ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में अलग-अलग विभागों में सैंकड़ों कर्मचारियों के खिलाफ 26 जनवरी 2001 के बाद तीसरी संतान की शिकायतें लंबित हैं। इनमें से कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। फिलहाल सामान्य प्रशासन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने मामले को संज्ञान में लिया है।

जीएडी में दबी 5 संतानों वालों की फाइलें सरकारी नियमों के

क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार सामान्य प्रशासन विभाग में ही 2 से अधिक संतानों वाले की शिकायतें दबी हैं। एक सहायक ग्रेड-2 ने 11 साल पहले 2013 में विभाग को बताया कि उसकी पांच संतान हैं। जिनमें से 3 संतानें 26 जनवरी 2001 के बाद पैदा हुई। मप्र सरकार के मंत्री गोविंद राजपूत की स्थापना में पदस्थ निज सचिव के खिलाफ भी 3 संतानों की शिकायत जीएडी में दबी हैं। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि जीएडी की स्थापना शाखा प्रभारी द्वारा ऐसे प्रकरणों को वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में नहीं लाया जाता है। स्थापना शाखा का दायित्व भी

एक ही कर्मचारी धर्मेंद्र बोरोले के पास पिछले 14 साल से है। अन्य कर्मचारियों की 2 से ज्यादा संतानों के प्रकरण भी धर्मेन्द्र बोरोले द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों तक नहीं पहुंचाएं जाए। धर्मेंद्र बोरोले कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका का काम भी देखते हैं। इनके कार्यकाल में दो कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका भी गुम हो चुकी है। ऐसे संवेदनशील मामलों में किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। न ही प्ररकण दर्ज किया गया।

शिक्षा विभाग में कार्रवाई, दूसरों में नहीं
2 से अधिक जीवित संतानों वाले कर्मचारियों के खिलाफ शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा कार्रवाई हुई हैं। विभाग के अनुसार करीब 100 से ज्याादा मामले अभी लंबित हैं। कुछ मामले न्यायालयों में है। स्वास्थ्य विभाग में भी शिकायतें ‘लंबित हैं। अन्य विभागों में 2 से ज्यादा संतानों वाले कर्मचारियों के खिलाफ मामलों को दबाया गया है। जिसमें सामान्य प्रशासन विभाग में लंबे समय से जमे कर्मचारियों की भूमिका कठघरे में है। क्योंकि ऐसे मामलों में दूसरे विभाग सामान्य प्रशासन विभाग से मार्गदर्शन मांगते हैं। कर्मचारियों द्वारा ऐसे मामलों को भी दबा लिया जाता है।