रीवा। सबका साथ सबका विकास के मॉडल में एमपी में काम में कर रही भाजपा सरकार ने अपने ही विकास प्राधिकरणों को डूबा दिया है। दिलचस्प बात यह है कि इन क्षेत्रों के विकास की गति देने भाजपा ने इनका गठन किया। अब भाजपा सरकार में इन प्राधिकरण को ना जमीन मिल पाई न विकास के मापदंड में खड़े उतरे। स्थिति यह है राजनीतिक दांव पेंच में इन प्राधिकरणों में अध्यक्ष व कार्यकारिणाी गठित नहीं हुई है। जबकि विंध्य ने विकास को लेकर भाजपा को 25 सीटें झोली में डाली है। बावजूद विंध्य की उपेक्षा को लेकर लोगों मेें आक्रोष है और भाजपा के सांसद और विधायक भी कुछ नहीं बोल पाए।
- भाजपा को 25 सीटे देने वाले विंध्य की उपेक्षा
बता दें कि प्रदेष में अपने खनिज संसाधनों से सबसे अधिक राजस्व देने वाले विंध्य के विकास के लिए 10 जिलो के विकास का विंध्य विकास प्राधिकरण बनाया गया था। इसमें सतना, सीधी, सिंगरौली,रीवा,षहडोल, अनूपपुर, डिंडौरी, उमरिया के साथ नवगठित जिले मैहर और मऊगंज षामिल है। इसका गठन 7 सितम्बर 2008 में हुआ था। वहीं आदिवासी बाहुल्य विंध्य की अनुसूचित जनजाति को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कोल विकास प्राधिकरण बनाया। विंध्य में गठित दोनोें प्राधिकरण का मुख्यालय रीवा बनाया गया था,लेकिन अब छह सालों से दोनो प्राधिकरण विकास की दौड़ से बाहर है। यहां तक अब कार्यालय भी फाइलों में है।
सांसद व विधायक नहीं बोले
विंध्य के विकास प्राधिकरण में सांसद और विधायकों को नामांकिम सदस्य बनाया गया था, बावजूद इन सभी ने विकास के प्राधिकरण को मजबूत करने की दिषा में कोई कदम नहीं उठाया। बताया जा रहा है कि पार्टी गाइड लाइन और अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण चुप्प रहे। परिणाम स्वरूप छह सालों से विंध्य विकास प्राधिकरण व कोल विकास प्राधिकरण की कार्यकारिणी तक गठित नहीं हुई है। 2018 में इसका इन दोनों की कार्यकारिणी भंग कर दी गई थी।
विंध्य विकास प्राधिकरण; छह साल से अध्यक्ष नहीं, बजट में भी कटौती
विंध्य विकास प्राधिकरण में बीते छह वर्षों से अध्यक्ष नहीं है। इसकी वजह से सामान्य सभा की बैठकें नहीं हो रही है। इसका असर कामकाज पर पड़ रहा है। सामान्य सभा की बैठक नहीं होने से जिलों की ओर से कोई मांग नहीं आ पा रही और न ही किसी कार्य की स्वीकृति मिल रही है। इसके अलावा विंध्य क्षेत्र के विकास को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। दरअसल, 2018 में विधानसभा चुनाव के बाद अध्यक्ष सहित कमेटी को भंग कर दिया गया था, तब से नए अध्यक्ष की नियुक्ति भी नहीं हो पाई है। प्राधिकरण गठित होने के समय दस करोड़ रुपए का बजट मिल रहा था। इसके बाद घटाया गया और धीरे-धीरे पांच करोड़ तक पहुंच गया। वर्ष 2018 में प्रदेश सरकार बदलने पर यह बजट 1.22 करोड़ कर दिया गया और इसमें भी हर तीन महीने में हिसाब मांगा जाता रहा और जो राशि खर्च नहीं होती थी उसे वापस मंगाया जाता रहा है। अब भोपाल के स्तर पर ही कार्य स्वीकृत कर सीधे राशि भेजी जा रही है।
तीन संभागों के दस जिले हैं प्राधिकरण क्षेत्र में
विंध्य विकास प्राधिकरण का कार्यक्षेत्र रीवा, शहडोल एवं जबलपुर संभाग के दस जिलों में फैला हुआ है। इसमें रीवा, मऊगंज, सीधी, सतना, मैहर, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर एवं डिंडोरी जिले शामिल हैं। इन जिलों के कलेक्टर प्राधिकरण में पदेन सदस्य हैं।
भोपाल से स्वीकृत की जा रही राशि
नए कार्य स्वीकृत नहीं होने पर अब भोपाल से कार्य स्वीकृत कर उसके लिए राशि जारी की जा रही है। बीते साल 11 निर्माण कार्यों के लिए राशि जारी करने के साथ ही भोपाल से ही स्वीकृति मिली थी। जिसमें रीवा जिले से गंगेव जनपद के कोष्टा ग्राम पंचायत में 20 लाख, सतना जिले में ग्राम पंचायत पक्षीत (मझगवां) को 13.65 लाख, मझियारी (नागौद) को दस लाख, बेला (नागौद) को सात लाख, तालाब गहरीकरण के लिए बेला (नागौद) को 14.99 लाख, मझियारी (नागौद) को 14.99 लाख, शहडोल जिले के बरना, भटिगांव, देवरी (जयसिंह नगर) आदि को दस-दस लाख रुपए मिले थे। होता है तब रीवा के संभागायुक्त के पास प्रशासक की जिम्मेदारी आ जाती है। वह संबंधित जिलों के कलेक्टरों के साथ वहां पर कराए जाने वाले कार्यों के संबंध में कार्ययोजना तैयार कर वित्तीय और प्रशासकीय स्वीकृति दे सकते हैं।
प्रभार लेने के बाद प्राधिकरण के कार्यों की समीक्षा कर रहे हैं। पुराने जो भी अधूरे कार्य हैं उनकी जानकारी शासन को दी जाएगी। बजट प्राप्त होने के बाद सभी कार्य पूरे कराए जाएंगे। साथ ही जरूरत के हिसाब से शासन को नए प्रस्ताव भी भेजेंगे। जल्द ही इसकी बैठक कर कार्ययोजना तैयार करेंगे।
बीएस जामोद, संभागायुक्त (प्रशासक प्राधिकरण)