रीवा। नगर निगम रीवा में मंगलवार को बुलाया गया परिषद का विशेष सम्मेलन (Special Session) राजनीतिक घमासान का केंद्र बन गया। सत्ता पक्ष के महापौर सहित एमआईसी (MIC) सदस्य और कांग्रेस पार्टी के पार्षदों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिसके चलते यह बैठक महापौर और कांग्रेस पार्टी के पार्षदों के प्रतिनिधियों के बिना ही संपन्न हो गई।
सम्मेलन में मुख्य रूप से तीन बड़े प्रस्तावों को मंजूरी दी गई; एक राष्ट्र-एक चुनाव का समर्थन, जीएसटी (GST) की दरों में कमी के लिए सरकार को धन्यवाद, और आत्मनिर्भर भारत संकल्प से जुड़े प्रस्ताव। ये तीनों एजेंडे सीधे तौर पर केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों का समर्थन करने वाले थे, जिसने कांग्रेस पार्षदों को यह आरोप लगाने का मौका दिया कि यह बैठक शहर या जनता के हित में नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) की व्यक्तिगत वाहवाही के लिए बुलाई गई थी।
पार्टी हित में बुलाया गया सम्मेलन: कांग्रेस का आरोप
महापौर और कांग्रेस पार्षदों ने इस विशेष सम्मेलन से दूरी बनाए रखी और इसे जनता विरोधी करार दिया। कांग्रेस पार्षदों का आरोप था कि भाजपा पार्षदों द्वारा बुलाया गया यह विशेष सम्मेलन, जनता के मुद्दों से दूर, केवल BJP पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का मंच था ।
महापौर का स्पष्ट बयान: रीवा के महापौर अजय मिश्रा बाबा ने बहिष्कार का कारण स्पष्ट करते हुए कहा: “यह बैठक केवल “विपक्ष पक्ष” भाजपा के व्यक्तिगत एजेंडे वाली थी । इसमें नगर हित की कोई बात नहीं थी । जीएसटी संशोधन का आम आदमी को कितना लाभ मिला, यह सभी को पता है । ऐसी बैठक में जाने का कोई मतलब नहीं था, इसलिए कांग्रेस पार्टी “सत्ता पक्ष ” ने इसका बहिष्कार किया ।” कांग्रेस पार्षदों “सत्ता पक्ष ” ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा पार्षदों “विपक्ष ” द्वारा बुलाए गए अधिकांश विशेष सम्मेलन ऐसे ही होते हैं, जिनमें केवल सरकार के लिए धन्यवाद प्रस्ताव जैसे एजेंडे शामिल होते हैं।
जनता के मुद्दे गौण: 30 मिनट में तीन ‘सरकारी’ प्रस्ताव पारित
नगर निगम के स्पीकर व्यंकटेश पाण्डेय की अध्यक्षता में शुरू हुई यह विशेष बैठक मात्र करीब आधे घंटे चली । महापौर और विपक्ष की अनुपस्थिति का फायदा उठाते हुए, भाजपा पार्षदों ने तीनों विवादास्पद एजेंडों को एक स्वर में बेहतर बताया और सर्वसम्मति से पारित कर दिया ।
सम्मेलन के तीन एजेंडे (सरकार की वाहवाही)
- एक राष्ट्र-एक चुनाव का समर्थन: विशेष सम्मेलन में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ (One Nation One Election) प्रणाली को लागू करने के लिए सरकार के संकल्प के समर्थन में प्रस्ताव लाया गया ।
- जीएसटी दरों में कमी पर धन्यवाद: जीएसटी (GST) की दरों में की गई कमी के संबंध में केंद्र सरकार को धन्यवाद प्रस्ताव दिया गया ।
- आत्मनिर्भर भारत संकल्प पर मुहर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत संकल्प से जुड़े प्रस्तावों को भी मंजूरी दी गई ।
ये तीनों प्रस्ताव स्पष्ट रूप से सरकार की योजनाओं का समर्थन करने वाले रहे हैं । कांग्रेस पार्षदों ने इसी कारण विरोध दर्ज कराया और कहा कि इन एजेंडों का नगर निगम और रीवा शहर के हित से कोई लेना-देना नहीं है ।
बैठक में केवल विपक्ष पक्ष के प्रतिनिधि मौजूद
बैठक में महापौर और एमआईसी सदस्यों की अनुपस्थिति, BJP पार्षदों ने भाग लिया:
अध्यक्षता: नगर निगम स्पीकर व्यंकटेश पाण्डेय ।
सरकारी अधिकारी: उपायुक्त (वित्त) प्रकाश द्विवेदी ।
भाजपा पार्षद: दीनानाथ वर्मा, शिवराज रावत, ममता कुशवाहा, सपना वर्मा, दारा सिंह, राजीव शर्मा, अर्चना शिवदत्त पाण्डेय, विमला सिंह, ज्योति सिंह, सालिकराम नापित, वंदना सिंह, अंबुज रजक, समीर शुक्ला, संजय खान, पूजा प्रमोद सिंह, ज्योति पांसा, गंगा प्रसाद यादव । अन्य: सांसद प्रतिनिधि रमाशंकर गुप्ता और विधायक प्रतिनिधि विवेक दुबे ।
निर्दलीय: पार्षद नम्रता संजय सिंह बघेल ।
सभापति की अनुमति के बाद, तीनों प्रस्तावों को उपस्थित सदस्यों की सर्वसम्मति से पारित किया गया और इन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रेषित करने का निर्णय लिया गया ।
जनता के हितों की अनदेखी: किसकी जिम्मेदारी?
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि रीवा नगर निगम का विशेष सम्मेलन जनता के मूलभूत मुद्दों जैसे—शहर की सफाई, जल निकासी, सड़कों की मरम्मत, या वित्तीय कुप्रबंधन पर चर्चा करने के बजाय, पूरी तरह से पार्टी की राजनीतिक प्रशंसा के लिए समर्पित था ।
महापौर सहित एमआईसी (MIC) सदस्य और कांग्रेस पार्टी के पार्षदों का आरोप बिल्कुल सही ठहरता है कि ऐसे विशेष सम्मेलन केवल भाजपा की वाहवाही और व्यक्तिगत एजेंडे की पूर्ति के लिए बुलाए जाते हैं । महापौर सहित सत्ता पक्ष के कांग्रेस पार्षदों के बिना आनन-फानन में प्रस्ताव पारित करना यह दर्शाता है कि विपक्ष केवल अपनी बात को दर्ज कराना चाहता था, न कि सदन के भीतर लोकतांत्रिक चर्चा या विपक्ष के विचारों को सुनना। यह प्रवृत्ति नगर निगम जैसे स्थानीय निकाय के उद्देश्य को कमजोर करती है, जिसका मुख्य कार्य स्थानीय जनता की समस्याओं का समाधान करना होता है, न कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए धन्यवाद प्रस्ताव पारित करना।
