दीपावली, या दीवाली, जिसे ‘रोशनी का त्योहार’ भी कहा जाता है, भारत के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि पाँच दिनों तक चलने वाला परंपरा, आध्यात्मिकता और पारिवारिक मेल-जोल का महापर्व है। यह बुराई पर अच्छाई की, अंधकार पर प्रकाश की और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है।
त्योहार की तैयारी: सफाई और सजावट
दीपावली मनाने की शुरुआत इसके आने से काफी पहले ही हो जाती है, जिसे तैयारियों का चरण कहा जाता है:
घर की साफ-सफाई (‘सफाई अभियान’): माना जाता है कि देवी लक्ष्मी केवल स्वच्छ घरों में ही प्रवेश करती हैं। इसलिए, दीपावली से पहले लोग अपने घरों की गहन सफाई करते हैं, जिसे अक्सर ‘सफाई अभियान’ कहा जाता है। पुराने और अनावश्यक सामान को हटाना शुभ माना जाता है।
सजावट और रंगोली: घर साफ होने के बाद उसे सजाया जाता है। लोग अपने घरों को रंगीन झालरों, रोशनी, फूलों और पत्तियों से सजाते हैं। प्रवेश द्वार पर शुभ प्रतीकों जैसे कि स्वास्तिक और ओम की चित्रकारी की जाती है।
रंगोली: घर के प्रवेश द्वार और आँगन में रंगोली बनाना एक अनिवार्य परंपरा है। रंगोली सकारात्मक ऊर्जा और अतिथियों के स्वागत का प्रतीक होती है।
पाँच दिनों का महापर्व: हर दिन का महत्व
दीपावली का उत्सव पाँच दिनों तक चलता है, और हर दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि है:
धनतेरस (पहला दिन)
यह दिन धन की देवी लक्ष्मी और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि को समर्पित है।
क्या करें: इस दिन शुभ माना जाता है कि लोग धातु की कोई नई वस्तु खरीदें, जैसे कि सोना, चांदी या नए बर्तन। ऐसा माना जाता है कि इससे धन और समृद्धि में वृद्धि होती है।
शाम की पूजा: घर के मुख्य द्वार पर यमराज के लिए तेल का दीया जलाया जाता है, जिसे ‘यम दीपम’ कहते हैं।
नरक चतुर्दशी/रूप चौदस (दूसरा दिन)
यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर नामक राक्षस का वध करने की खुशी में मनाया जाता है।
क्या करें: इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना और शरीर पर उबटन लगाना शुभ माना जाता है। इसे ‘रूप चौदस’ भी कहा जाता है क्योंकि यह सुंदरता और अच्छी सेहत से जुड़ा है।
दीपावली (मुख्य दिन)
यह सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जिस दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, और अयोध्या वासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था।
लक्ष्मी पूजन: शाम को शुभ मुहूर्त में देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है ताकि घर में सुख, शांति और समृद्धि आए।
दीये और आतिशबाजी: पूजा के बाद पूरे घर में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं। इसके बाद लोग खुशी और उत्साह व्यक्त करने के लिए हल्के पटाखे जलाते हैं।
गोवर्धन पूजा (चौथा दिन)
यह दिन भगवान कृष्ण से जुड़ा है, जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
क्या करें: इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं और गौ-माता की पूजा करते हैं।
भाई दूज (पाँचवा दिन)
यह दिन भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है।
क्या करें: बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, उनकी लंबी आयु और खुशहाली की प्रार्थना करती हैं। भाई इसके बदले में उन्हें उपहार देते हैं।
दीपावली का सामाजिक पहलू
दीपावली का त्योहार सिर्फ पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह रिश्तों को मजबूत करने का भी अवसर है:
उपहार और मिठाई: इस दौरान लोग अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के घर जाकर मिठाई, सूखे मेवे और उपहार देते-लेते हैं।
परिवार का समय: यह साल का वह समय होता है जब दूर रहने वाले परिजन भी घर लौटते हैं, जिससे परिवार को एक साथ जश्न मनाने और परंपराओं को निभाने का अवसर मिलता है।
दीपावली हमें याद दिलाती है कि हमें अपने भीतर की रोशनी को जलाए रखना है, जीवन के अंधकार को दूर करना है और सभी के साथ खुशियाँ बाँटनी हैं। प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित तरीके से इस त्योहार को मनाना हमारी जिम्मेदारी है।