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LIVE विश्लेषण: राहुल गांधी का ‘VoteChori – The H Files’ खुलासा, चुनाव आयोग पर अभूतपूर्व हमला और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सवाल

Published: November 5, 2025

नई दिल्ली। लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने आज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) मुख्यालय से एक विशेष और लंबी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का शीर्षक “#VoteChori – The H Files” था, जिसके माध्यम से उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे गंभीर आरोपों में से एक को सामने रखा है: मतदाता सूचियों में संगठित और तकनीकी ‘वोट चोरी’।

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले किए गए इस ‘हाइड्रोजन बम’ खुलासे ने राष्ट्रीय राजनीति में भूचाल ला दिया है।

‘H फाइल्स’ का दावा – आरोपों का आधार और तकनीकी साक्ष्य
राहुल गांधी ने दावा किया कि कांग्रेस की ‘डेटा एनालिसिस विंग’ और विशेषज्ञों की टीम ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध मतदाता सूची के डेटा का गहन विश्लेषण किया है। ‘द H फाइल्स’ इसी डेटा, साक्ष्य और फील्ड रिपोर्ट का एक व्यापक संग्रह है, जिसे उन्होंने देश के सामने पेश किया।

राहुल गांधी के अनुसार, यह ‘वोट चोरी’ का आरोप किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित (Systematic) और संगठित (Organised) प्रक्रिया पर लगाया गया है, जिसका लक्ष्य चुनाव परिणामों को प्रभावित करना है।

आरोपों का आधार: तकनीकी और संगठित हेराफेरी
राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया कि ‘वोट चोरी’ की यह प्रक्रिया कैसे अंजाम दी जा रही है:

ऑनलाइन डिलीशन का दुरुपयोग: उन्होंने आरोप लगाया कि मतदाताओं के नाम हटाने (डिलीशन) के लिए फॉर्म-7 का ऑनलाइन उपयोग किया जा रहा है, लेकिन यह प्रक्रिया कानूनी नहीं, बल्कि दुर्भावनापूर्ण है।

फर्जी मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल: सबसे बड़ा और चौंकाने वाला आरोप यह है कि मतदाताओं के नाम डिलीट करने के लिए जिन मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया, वे अक्सर उस राज्य या यहाँ तक कि उस क्षेत्र के नहीं हैं। कई नंबर या तो बंद हैं, या किसी और राज्य में ऑपरेट हो रहे हैं, या फर्जी हैं। इसका अर्थ है कि जिस वोटर का नाम हटाया गया, उसे इसकी जानकारी ही नहीं दी गई, जो कि चुनावी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।

सॉफ्टवेयर और डमी उपयोगकर्ता: राहुल गांधी ने संकेत दिया कि यह सारा काम मानव गलती से नहीं, बल्कि एक सॉफ्टवेयर आधारित सिस्टम से किया जा रहा है, जहाँ ‘फाइलिंग’ करने वाले (यानी नाम डिलीट करने का आवेदन करने वाले) के नाम लगातार पहले नंबर पर आ रहे हैं, जो एक ‘सिस्टमेटिक’ पैटर्न को दर्शाता है।

लक्ष्य पर हमला: राज्यों और सीटों का उल्लेख
‘द H फाइल्स’ में कांग्रेस ने कुछ प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों और राज्यों का उदाहरण दिया जहाँ कथित तौर पर यह संगठित डिलीशन हुआ:

कर्नाटक का अलंद निर्वाचन क्षेत्र: यहाँ बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम डिलीट किए गए, जिसमें पाया गया कि डिलीशन के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबर कर्नाटक के बाहर के थे।

महाराष्ट्र का राजुरा क्षेत्र: इसी तरह के पैटर्न यहाँ भी पाए गए, जहाँ जानबूझकर उन मतदाताओं को निशाना बनाया गया, जो कथित तौर पर सत्तारूढ़ दल के समर्थक नहीं थे।

हरियाणा में 25 लाख वोटों की चोरी का दावा: राहुल गांधी ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में 25 लाख वोटों की चोरी हुई है, जिससे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसे साबित करने के लिए ब्राजीलियन मॉडल की तस्वीर दिखाकर दावा किया कि उसने हरियाणा की वोटर लिस्ट में अलग-अलग नाम और 10 बूथों पर 22 बार वोट डाला।

संवैधानिक संस्थाओं पर अभूतपूर्व हमला
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में ECI पर सबसे गंभीर आरोप लगाते हुए उसकी निष्पक्षता और संवैधानिक कर्तव्य पर सीधा सवाल उठाया।

चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सीधा सवाल
संवैधानिक कर्तव्य में विफलता: उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ (One Person, One Vote) के सिद्धांत की रक्षा करने में विफल रहा है। उन्होंने कहा कि यह ECI का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह मतदाताओं की सूची को त्रुटिहीन रखे, लेकिन वह ऐसा करने में चूक रहा है।

‘चोरों की रक्षा’ और राजनीतिक लाभ: उन्होंने खुले तौर पर आरोप लगाया कि चुनाव आयोग जानबूझकर या अनजाने में इन ‘वोट चोरों’ की रक्षा कर रहा है, और जब विपक्ष साक्ष्य लेकर उनके पास जाता है, तो आयोग उन साक्ष्यों को खारिज कर देता है। उनका इशारा था कि ECI सत्तारूढ़ दल के दबाव में काम कर रहा है।

‘लोकतंत्र को कुचलने का षड्यंत्र’
राहुल गांधी ने कहा कि भारत का लोकतंत्र दुनिया में सबसे बड़ा है, और इस ‘वोट चोरी’ का अर्थ है लोकतंत्र की जड़ पर हमला। यदि चुनावी प्रक्रिया में ही हेराफेरी होने लगे, तो लोगों का चुनावी प्रक्रिया से विश्वास उठ जाएगा, और यह देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

राहुल गांधी की ECI से प्रमुख मांगें
राहुल गांधी ने ECI से मांग की है कि वह: इस पूरे मामले की तत्काल, पारदर्शी और समयबद्ध जाँच शुरू करे।
‘वोट चोरी’ में शामिल लोगों को चिह्नित कर उन पर सख्त कार्रवाई करे।
देश के करोड़ों मतदाताओं का लोकतंत्र में विश्वास बहाल करने के लिए सार्वजनिक रूप से सच्चाई सामने लाए।

राजनीतिक, कानूनी और संवैधानिक निहितार्थ
राहुल गांधी की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय और विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसके गहरे निहितार्थ हैं।

बिहार चुनाव से पहले सियासी ‘हाइड्रोजन बम’
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले किया गया यह खुलासा, महागठबंधन के पक्ष में एक मजबूत राजनीतिक लहर पैदा कर सकता है। यह सत्तारूढ़ दल को बचाव की मुद्रा में ला देगा, और उन्हें आरोपों का विस्तृत जवाब देने के लिए मजबूर करेगा, जिससे उनका ध्यान चुनाव प्रचार से हट सकता है।

चुनाव आयोग और न्यायपालिका का टकराव
ECI का पलटवार: चुनाव आयोग ने पहले भी राहुल गांधी के इन आरोपों को ‘भ्रामक’ बताते हुए उन्हें ‘वोट चोरी’ जैसे शब्दों का प्रयोग न करने की चेतावनी दी थी। अब ‘द H फाइल्स’ के साथ, यह टकराव और बढ़ेगा, और ECI को या तो आरोपों को ध्वस्त करने के लिए मजबूत साक्ष्य पेश करने होंगे या जाँच के लिए तैयार होना होगा।

न्यायिक हस्तक्षेप: ‘वोट चोरी’ के आरोपों की न्यायिक जाँच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले सुनवाई से इनकार कर दिया था, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर लगाए गए आरोपों और डेटा के खुलासे के बाद, यह मामला फिर से कोर्ट पहुँच सकता है। न्यायपालिका पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करने का दबाव बढ़ गया है।

लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर संकट
यह विवाद सिर्फ दो राजनीतिक दलों के बीच का नहीं है। यह भारत के मतदाताओं के मन में चुनाव की निष्पक्षता को लेकर संदेह पैदा करता है। यदि संवैधानिक संस्थाएं स्वयं सवालों के घेरे में आ जाती हैं, तो यह देश की लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा है।

राहुल गांधी के ‘H फाइल्स’ खुलासे ने भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा का समय ला दिया है। यह देखना बाकी है कि क्या चुनाव आयोग और न्यायपालिका इन गंभीर आरोपों पर सक्रिय रूप से कार्य करते हैं, या ये आरोप राजनीतिक बयानबाजी बनकर ही रह जाएंगे। लोकतंत्र को बचाने के लिए यह जरूरी है कि संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और विश्वसनीयता कायम रहे।

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