नई दिल्ली। लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने आज अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) मुख्यालय से एक विशेष, लंबी और बेहद आक्रामक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का शीर्षक “#VoteChori – The H Files” था, जिसके माध्यम से उन्होंने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे गंभीर आरोपों में से एक को सामने रखा है: मतदाता सूचियों में संगठित और तकनीकी ‘वोट चोरी’।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले, राहुल गांधी का यह कदम महज एक राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि एक “हाइड्रोजन बम” के रूप में सामने आया है, जिसने चुनावी पारदर्शिता और संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस का केंद्र: ‘H फाइल्स’ क्या है?
राहुल गांधी ने दावा किया कि कांग्रेस की ‘डेटा एनालिसिस विंग’ और विशेषज्ञों की टीम ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध मतदाता सूची के डेटा का गहन विश्लेषण किया है। द‘ H फाइल्स’ इसी डेटा, साक्ष्य और फील्ड रिपोर्ट का एक व्यापक संग्रह है, जिसे उन्होंने देश के सामने पेश किया।
राहुल गांधी के अनुसार, यह ‘वोट चोरी’ का आरोप किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित (Systematic) और संगठित (Organised) प्रक्रिया पर लगाया गया है, जिसका लक्ष्य चुनाव परिणामों को प्रभावित करना है।
आरोपों का आधार: तकनीकी और संगठित हेराफेरी
राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में विस्तार से बताया कि ‘वोट चोरी’ की यह प्रक्रिया कैसे अंजाम दी जा रही है:
ऑनलाइन डिलीशन का दुरुपयोग: उन्होंने आरोप लगाया कि मतदाताओं के नाम हटाने (डिलीशन) के लिए फॉर्म-7 का ऑनलाइन उपयोग किया जा रहा है, लेकिन यह प्रक्रिया कानूनी नहीं, बल्कि दुर्भावनापूर्ण है।
फर्जी मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल: सबसे बड़ा और चौंकाने वाला आरोप यह है कि मतदाताओं के नाम डिलीट करने के लिए जिन मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल किया गया, वे अक्सर उस राज्य या यहाँ तक कि उस क्षेत्र के नहीं हैं। कई नंबर या तो बंद हैं, या किसी और राज्य में ऑपरेट हो रहे हैं, या फर्जी हैं। इसका अर्थ है कि जिस वोटर का नाम हटाया गया, उसे इसकी जानकारी ही नहीं दी गई, जो कि चुनावी नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
सॉफ्टवेयर और डमी उपयोगकर्ता: राहुल गांधी ने संकेत दिया कि यह सारा काम मानव गलती से नहीं, बल्कि एक सॉफ्टवेयर आधारित सिस्टम से किया जा रहा है, जहाँ ‘फाइलिंग’ करने वाले (यानी नाम डिलीट करने का आवेदन करने वाले) के नाम लगातार पहले नंबर पर आ रहे हैं, जो एक ‘सिस्टमेटिक’ पैटर्न को दर्शाता है।
लक्ष्य और प्रमाण के उदाहरण
‘द H फाइल्स’ में कांग्रेस ने कुछ प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों का उदाहरण दिया जहाँ कथित तौर पर यह संगठित डिलीशन हुआ:
कर्नाटक का अलंद निर्वाचन क्षेत्र: यहाँ बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम डिलीट किए गए, जिसमें पाया गया कि डिलीशन के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबर कर्नाटक के बाहर के थे।
महाराष्ट्र का राजुरा क्षेत्र: इसी तरह के पैटर्न यहाँ भी पाए गए, जहाँ जानबूझकर उन मतदाताओं को निशाना बनाया गया, जो कथित तौर पर सत्तारूढ़ दल के समर्थक नहीं थे।
कांग्रेस का दावा है कि उनके विश्लेषण से पता चला है कि इस ‘वोट चोरी’ के कारण उन्हें पिछले चुनावों में, विशेषकर 50,000 से कम अंतर वाली सीटों पर, 70 से अधिक लोकसभा सीटों का नुकसान हुआ।
चुनाव आयोग पर सीधा और अभूतपूर्व हमला
राहुल गांधी ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में पहली बार किसी विपक्षी नेता द्वारा चुनाव आयोग पर इतना सीधा और तीखा हमला किया है।
संवैधानिक कर्तव्य में विफलता: उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ (One Person, One Vote) के सिद्धांत की रक्षा करने में विफल रहा है। उन्होंने कहा कि यह ECI का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह मतदाताओं की सूची को त्रुटिहीन रखे, लेकिन वह ऐसा करने में चूक रहा है।
‘चोरों की रक्षा’: राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग जानबूझकर या अनजाने में इन ‘वोट चोरों’ की रक्षा कर रहा है, और जब विपक्ष साक्ष्य लेकर उनके पास जाता है, तो आयोग उन साक्ष्यों को खारिज कर देता है।
मांग: राहुल गांधी ने ECI से मांग की है कि वह इस पूरे मामले की तत्काल, पारदर्शी और समयबद्ध जाँच शुरू करे। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान आवश्यक है, लेकिन जब वे अपना कर्तव्य नहीं निभातीं, तो देश के संविधान और लोकतंत्र पर सीधा खतरा आ जाता है।
राहुल गांधी का यह ‘हाइड्रोजन बम’ उस समय फटा है जब बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने वाला है।
चुनावी लहर: महागठबंधन के लिए यह प्रेस कॉन्फ्रेंस एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गई है। यह उनके कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में उत्साह भर सकती है कि उनकी हार का कारण सिर्फ राजनीतिक असफलता नहीं, बल्कि ‘वोट चोरी’ भी हो सकती है।
सत्तारूढ़ दल का बचाव: सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अब इस डेटा-आधारित आरोप का तत्काल, विस्तृत और तथ्यात्मक जवाब देना होगा, जिससे उनका ध्यान चुनाव प्रचार से हटकर आरोपों का खंडन करने में लग जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का रुख: इस मामले से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट पहले ही इनकार कर चुका है, लेकिन नए साक्ष्यों के साथ यह मामला फिर से कोर्ट पहुँच सकता है, जहाँ चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर न्यायिक समीक्षा की मांग की जा सकती है।
राहुल गांधी का यह कदम यह स्थापित करता है कि अब भारतीय राजनीति में चुनावी लड़ाई सिर्फ नीतियों या वादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता पर भी लड़ी जा रही है। ‘वोट चोरी – द H फाइल्स’ ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि बिहार चुनाव और उसके बाद भी यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस के केंद्र में बना रहेगा।
