रीवा। रीवा स्थित आदर्श नगर में देवेंद्रचार्य जी महाराज के मुखारविंद से प्रवाहित हो रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिवस की कथा ने श्रोताओं को भक्ति के शिखर पर पहुँचा दिया। व्यासपीठ से महाराज श्री ने भगवान श्रीकृष्ण की तीन प्रमुख लीलाओं गोवर्धन धारण, गोपी विरह (गोपी गीत), और कंस वध के बाद हुए रुक्मिणी विवाह का ऐसा अद्भुत वर्णन किया, जिससे पूरा कथा पंडाल भाव-विभोर हो गया। आज की कथा प्रेम की पराकाष्ठा, अहंकार के दमन और धर्म की विजय की साक्षी बनी।
अहंकार का दमन: गोवर्धन लीला और गोविन्द नाम
कथा की शुरुआत गोवर्धन लीला के प्रसंग से हुई, जहाँ भगवान ने इंद्र के अहंकार का मर्दन किया। महाराज श्री ने बताया कि जब दीपावली के अगले दिन इंद्र पूजा की परंपरा को रोककर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की, तो क्रुद्ध इंद्र ने सात दिन और सात रात तक मूसलाधार बारिश की। प्रभु श्रीकृष्ण ने एक ही कनिष्ठिका उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर पूरे ब्रज की रक्षा की।
इस दैवीय शक्ति को देखकर इंद्र का अभिमान टूटा और उन्होंने लज्जित होकर क्षमा याचना की। इंद्र ने कामधेनु गाय के दूध से भगवान का अभिषेक किया और उन्हें ‘गोविन्द’ नाम से संबोधित किया। महाराज श्री ने इस प्रसंग के माध्यम से समझाया कि भगवान जिसके ऊपर कृपा करते हैं, सबसे पहले उसके अभिमान को ही दूर करते हैं। इस दौरान पौराणिक कथा का भी वर्णन किया गया कि कैसे अगस्त्य ऋषि ने इंद्र के बरसाए हुए सम्पूर्ण जल का तीन घूँट में पान कर लिया, जिससे ब्रज में जल की एक बूँद भी नहीं ठहर पाई ।

प्रेम की पराकाष्ठा: रासलीला और गोपी गीत
कथा का सबसे भावुक क्षण तब आया, जब महाराज श्री ने भगवान की अलौकिक रासलीला और गोपी गीत का वर्णन किया। शरद पूर्णिमा की रात, भगवान की बंसी की मधुर तान सुनकर गोपियाँ अपने सारे कार्य छोड़कर दौड़ी चली आईं। प्रभु ने पहले उनसे वापस जाने को कहा, उनकी भक्ति की परीक्षा ली, लेकिन गोपियों ने स्पष्ट किया कि कृष्ण ही उनके परम पति हैं।
महाराज श्री ने बताया कि गोपियों का प्रेम सांसारिक नहीं, बल्कि विशुद्ध था। जब प्रभु अंतर्ध्यान हो गए, तब विरह में व्याकुल गोपियों ने जिस गीत को गाया, वही ‘गोपी गीत’ कहलाया। गोपियों ने हर वृक्ष, हर लता से अपने ‘प्राण वल्लभ’ के बारे में पूछा और अपने प्रेम की तीव्रता से भगवान को पुनः प्रकट होने पर विवश कर दिया। महाराज श्री ने कहा, सच्चा प्रेमी वही है, जो अपने वियोग में भी भगवान के नाम का सहारा लेकर जीवित रहे।
मथुरा प्रस्थान, कंस वध और धर्म की स्थापना
आगे की कथा में कृष्ण और बलराम के मथुरा प्रस्थान का भावपूर्ण वर्णन किया गया। अक्रूर उन्हें कंस के निमंत्रण पर मथुरा ले जाने आए, तो माता यशोदा और गोपियों की विरह-वेदना ने सबको द्रवित कर दिया। महाराज श्री ने बताया कि ब्रजवासियों ने रथ का मार्ग रोक दिया, लेकिन प्रभु ने उन्हें आश्वासन देकर मथुरा प्रस्थान किया।
मथुरा पहुँचकर, भगवान ने अपने अवतरण का उद्देश्य पूरा करना शुरू किया। उन्होंने कंस के धोबी का वध किया, माली सुदामा को परम भक्ति का वरदान दिया, और कुब्जा नामक दासी को उसके चंदन के लेप के बदले सुन्दर स्वरूप प्रदान कर उसे सीधा कर दिया। अंत में, उन्होंने विशाल धनुष को तोड़ा, मतवाले कुवलयापीड़ हाथी का संहार किया और मल्लयुद्ध में चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों का उद्धार किया। रणभूमि में, भगवान ने अत्याचारी कंस को सिंहासन से खींचकर उसके केश पकड़कर पटक दिया और उसका वध कर दिया, जिससे धर्म की पुनर्स्थापना हुई।
रुक्मिणी कल्याण: पहला शाही विवाह
कथा का समापन भगवान श्रीकृष्ण के प्रथम विवाह विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के साथ के भव्य उत्सव से हुआ। महाराज श्री ने बताया कि रुक्मिणी जी ने मन ही मन कृष्ण को अपना पति मान लिया था, लेकिन उनके भाई रुक्मी ने उनका विवाह चेदिराज शिशुपाल से तय कर दिया।
रुक्मिणी जी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपने प्रेम की घोषणा की और उन्हें ‘वीर शुल्क’ (बहादुरी का पुरस्कार) के रूप में स्वयं को हरण करने का आह्वान किया। भगवान तुरंत द्वारका से कुण्डिनपुर पहुँचे। रुक्मिणी जी कुल देवी अंबिका के पूजन के बाद जैसे ही बाहर आईं, भगवान ने उनका हाथ पकड़ा और रथ में बिठाकर उनका हरण कर लिया। रुक्मी और शिशुपाल की सेनाओं को परास्त करने के बाद, द्वारिका में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण का विवाह महासत्सव सम्पन्न हुआ। आज की कथा ने हमें सिखाया कि जीवन में कितनी भी विपरीत परिस्थितियां आएं, यदि मन में विशुद्ध प्रेम और पूर्ण समर्पण हो, तो ईश्वर अवश्य साथ देते हैं।

समापन और कल का आह्वान
महाराज श्री ने बताया कि विवाह की शेष लीलाएं और भगवान के 16,108 विवाहों का प्रसंग संक्षेप में कल सुनाया जाएगा। इसके साथ ही, कल सुदामा चरित की कथा का मार्मिक वर्णन किया जाएगा, जो भागवत कथा का अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग है। कथा के साथ ही, रुक्मिणी और शालिग्राम-तुलसी विवाह का भव्य उत्सव भी मनाया गया, जिसमें यजमानों ने कन्यादान कर पुण्य प्राप्त किया। सभी भक्तों से अनुरोध किया गया कि कथा के अंतिम दिवस पर सुदामा चरित्र और कथा के विश्राम में शामिल होकर अपने जीवन को सफल बनाएं।
