Tariff एक प्रकार का आयात शुल्क है जो सरकार द्वारा दूसरे देशों से आने वाले सामानों पर लगाया जाता है। यह एक व्यापारिक उपकरण है जिसका उपयोग स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा, सरकारी राजस्व बढ़ाने या राजनीतिक दबाव डालने के लिए किया जाता है।
टैरिफ की कीमत कौन चुकाता है?
यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। आम धारणा के विपरीत, टैरिफ की कीमत आयातकर्ता देश की कंपनियां चुकाती हैं, न कि निर्यातकर्ता देश। जब अमेरिकी कंपनियां भारत से सामान आयात करती हैं, तो वे अमेरिकी सरकार को टैरिफ का भुगतान करती हैं। इससे आयातित सामान महंगा हो जाता है, जिसकी कीमत अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं को चुकानी पड़ती है।
भारत पर अमेरिकी टैरिफ की स्थिति
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह दो चरणों में लागू हो रहा है:
पहला चरण: 25 प्रतिशत टैरिफ (पहले से लागू)
दूसरा चरण: अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ (27 अगस्त से लागू)
ट्रंप के आरोप और तर्क
ट्रंप प्रशासन का मुख्य तर्क यह है कि भारत रूसी तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दे रहा है। उनका कहना है कि रूसी तेल की खरीदारी से रूस को युद्ध जारी रखने के लिए आर्थिक मदद मिल रही है। ट्रंप ने कहा है, “वे (भारतीय) परवाह नहीं करते कि यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं।”
भारत की प्रतिक्रिया और जवाब
भारत ने अमेरिकी टैरिफ को “अनुचित और अनावश्यक” बताया है। भारत सरकार के मुख्य तर्क:
बाजार आधारित खरीदारी: भारत का कहना है कि तेल आयात बाजार कारकों पर आधारित है
ऊर्जा सुरक्षा: 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता है
दोहरे मापदंड: भारत ने यूरोपीय संघ और स्वयं अमेरिका के रूस के साथ व्यापार की ओर इशारा किया है
वैश्विक व्यापार संदर्भ
दिलचस्प बात यह है कि यूरोपीय देश और अमेरिका भी रूस के साथ व्यापार जारी रखे हुए हैं। अमेरिका अभी भी रूसी यूरेनियम का आयात कर रहा है, जबकि कई यूरोपीय देश रूसी गैस और अन्य कमोडिटीज खरीद रहे हैं।
- आर्थिक प्रभाव
अमेरिका पर प्रभाव:
अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना
भारतीय सामानों की कीमत में वृद्धि
मुद्रास्फीति में संभावित इजाफा - भारत पर प्रभाव:
अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा की हानि
वैकल्पिक बाजारों की तलाश की जरूरत
निर्यातकों पर नकारात्मक प्रभाव
टैरिफ युद्ध एक दोधारी तलवार है जो दोनों देशों को नुकसान पहुंचाती है। जबकि टैरिफ राजनीतिक दबाव का एक साधन है, इसकी वास्तविक कीमत आम जनता को चुकानी पड़ती है। भारत-अमेरिका के बीच यह व्यापारिक विवाद वैश्विक अर्थव्यवस्था और द्विपक्षीय संबंधों के लिए चुनौती बन गया है।