अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर स्थापित किए गए ध्वज के ऐतिहासिक स्वरूप को पुनर्जीवित करने में रीवा के इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा की निर्णायक भूमिका रही है । मिश्रा ने यह सुनिश्चित किया कि मंदिर के ध्वज पर केवल आधुनिक या साधारण चिह्न नहीं, बल्कि रामायण काल में अयोध्या राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले प्राचीन प्रतीकों को स्थान मिले।
ध्वज पर तीन प्रतीक: कोविदार, सूर्य और ओम
ललित मिश्रा ने प्राचीन ग्रंथों के प्रमाणों के आधार पर ध्वज में तीन विशिष्ट प्रतीकों को शामिल करने की मांग की थी, जिसे बाद में स्वीकृति मिल गई । ये प्रतीक ध्वज को धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णता प्रदान करते हैं ।
- कोविदार (कचनार वृक्ष): यह इक्ष्वाकु वंश का राजचिह्न रहा है । मिश्रा ने बताया कि पहले हर राज्य का अपना ध्वज होता था और अयोध्या राज्य की पहचान इसी कोविदार वृक्ष से होती थी ।
- सूर्य: यह इक्ष्वाकु वंश की वंशपरंपरा का प्रतीक माना जाता है ।
- ओम: इसे ध्वज को धार्मिक और आध्यात्मिक पूर्णता प्रदान करने के लिए शामिल किया गया है ।
शुरुआत में ध्वज पर केवल सूर्य का चिह्न लगाने पर विचार किया जा रहा था, लेकिन मिश्रा द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक तर्कों और प्रमाणों के बाद कोविदार वृक्ष को भी ध्वज में शामिल करने की स्वीकृति मिली ।
कोविदार का विचार कैसे आया?
ललित मिश्रा को श्रीराम के समय के ध्वज को मंदिर में पुनर्जीवित करने का विचार तब आया, जब मंदिर निर्माण का रास्ता लंबे संघर्ष के बाद खुला । उन्होंने इसके लिए वाल्मीकि रामायण, पुराणों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मिले संदर्भों को जुटाकर मंदिर ट्रस्ट को भेजा ।
विंध्य क्षेत्र से जुड़ाव: मिश्रा ने बताया कि श्रीराम के वनवास काल से जुड़े कई प्रसंग विंध्य क्षेत्र से संबंधित हैं । श्रीराम ने अयोध्या से वनवास जाते समय तमसा (टमस) नदी के किनारे का मार्ग चुना था, जो रीवा और सतना जिलों से संबंधित है । इसके अलावा, चित्रकूट में भी श्रीराम कई वर्षों तक रहे, और सरभंग आश्रम तथा गिद्धा पहाड़ का वर्णन रामायण में मिलता है ।
भरत और निषादराज द्वारा पहचान: उन्होंने एक निर्णायक प्रमाण दिया कि भरत जब चित्रकूट में श्रीराम से मिलने आए थे, तब निषादराज और लक्ष्मण दोनों ने सेना को कोविदार ध्वज से ही पहचाना था ।
इस तरह, इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा की शोधपरक देन के कारण श्रीराम मंदिर के शिखर ध्वज पर अयोध्या की प्राचीन और गौरवशाली पहचान कोविदार को स्थान मिला ।
