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Ujjain Rape News: दुखों से भरी है उज्जैन रेप पीड़िता की कहानी, एक दिन पहले सतना से हुई थी गुम

By Surendra Tiwari

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रीवा। महाकाल की नगरी में किशोरी के साथ दरिंदगी की घटना की शिकार रेप पीड़िता सतना की रहने वाली है। वहां सतना के जैतवारा से 24 सितंबर को लापता हो गई थी। इसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी परिजनों ने दर्ज कराई है। सतना से लापता होने के बाद उज्जैन में मिली रेप पीड़िता की कहानी दुखों से भरी है। बताया जा रहा है कि सतना की रहने वाली रेप पीड़िता की मां बचपन में ही छोड़कर कर चली गई थी । वह अपने दादा दादी के साथ रहती थी। घटना की जानकारी होने के बाद उज्जैन के लिए सतना पुलिस रवाना हो गई है। बता दें इस मामले मेें पुलिस ने अभी तक पांच ऑटो चालकों को पकड़ा है।

बता दें कि सतना से 24 सितंबर को लापता किशोरी 25 सितंबर को लड़की बदहवास हालत में महाकाल थाना इलाके में दांडी आश्रम के पास मिली थी। उसके कपड़े खून से सने हुए थे और नीचले हिस्से से खून बह रहा था। इस तरह खून से लथपथ बच्ची आधे-अधूरे कपड़ों में सांवराखेड़ी सिंहस्थ बायपास की कॉलोनियों में ढाई घंटे तक भटकती रही। इसके सीसीटवी फुटेज पुलिस ने खोजे हैं। जिसमें वह पूरे आठ किलोमीटर पैदल चलती रही। इस दौरान लोगों ने उसे देखा लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया।

पिता है अर्धविक्षिप्त

बताया जा रहा है कि बच्ची की मां बचपन में ही उसे छोड़कर चली गई थी। पिता अर्धविक्षिप्त हैं। बच्ची अपने दादा और बड़े भाई के साथ एक गांव में रहती है। गांव के ही स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ती है। उसके लापता होने पर दादा ने 24 सितंबर को गुमशुदगी दर्ज कराई थी। सतना पुलिस की टीम भी उज्जैन के लिए रवाना हुई है। जांच में सामने आया है कि बच्ची अपने घर से निकलकर ट्रेन से उज्जैन पहुंची थी। वह सोमवार तड़के 3 बजे उज्जैन रेलवे स्टेशन पर उतरी। यहां उसने एक ऑटो ड्राइवर से कुछ बात की। सुबह 5 पांच बजे तक बच्ची अलग-अलग ऑटो ड्राइवर के साथ सीसीटीवी फुटेज में नजर आई है।

उज्जैन की घटना पर प्रियंका का टवीट

उज्जैन की घटना पर प्रियंका गांधी ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में एक छोटी बच्ची के साथ हुई बर्बरता आत्मा को झकझोर देने वाली है। अत्याचार के बाद वह ढाई घंटे तक दर-दर मदद के लिए भटकती रही और फिर बेहोश होकर सड़क पर गिर गई, लेकिन मदद नहीं मिल सकी। ये है मध्यप्रदेश की कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा भाजपा के 20 साल के कुशासन तंत्र में बच्चियां, महिलाएं, आदिवासी, दलित कोई सुरक्षित नहीं है। लाड़ली बहना के नाम पर चुनावी घोषणाएं करने का क्या फायदा है? अगर बच्चियों को सुरक्षा और मदद तक नहीं मिल सकती।

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