रीवा, मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश में जहाँ एक ओर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) गौ-संरक्षण और गौ-सेवा को लेकर बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर रीवा जिले के सिरमौर जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम उमरी की एक गौशाला की भयावह और अमानवीय स्थिति ने इन दावों की पोल खोल कर रख दी है। स्थानीय लोगों ने उमरी की पहाड़ी पर स्थित इस गौशाला की तत्काल जाँच और जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है, क्योंकि यहाँ गायें भूख, प्यास और बीमारी से तड़प-तड़पकर मर रही हैं।
गोवंश की दुर्दशा का एक वीडियो भी स्थानीय स्तर पर वायरल हो रहा है, जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि समूचे प्रदेश की गौ-सेवा की नीति पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं।
दयनीय हालात: कंकाल बन रही गायें, मृत गोवंश को नोच रहे जानवर
उमरी गौशाला की स्थिति अत्यंत हृदयविदारक है। प्रत्यक्षदर्शियों और वायरल वीडियो के अनुसार, गौशाला के अंदर कीचड़ और गंदगी का अंबार है, और जीवित गोवंश की हालत बेहद खराब है।
चारा-पानी का अभाव: गौशाला में गायों के लिए न तो पर्याप्त चारा (भूसा) है और न ही पीने के लिए शुद्ध पानी की कोई व्यवस्था। जिसके चलते कमजोर और बीमार गायें वहीं दम तोड़ रही हैं।
चिकित्सा सुविधाओं की कमी: कई गायें गंभीर रूप से बीमार हैं, लेकिन उन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा या देखभाल उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। गौशाला के अंदर बीमार गायों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।
अमानवीय दृश्य: हालात इतने बदतर हैं कि मरे हुए गोवंश को वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। कौए और आवारा कुत्ते खुलेआम मृत या अत्यधिक कमजोर गायों को नोच-नोचकर खा रहे हैं। यह दृश्य न केवल गौशाला के कुप्रबंधन को, बल्कि मानवता के पतन को भी दर्शाता है।
प्रशासनिक संवेदनहीनता: यह गौशाला प्रशासनिक निगरानी में चलती है, लेकिन संचालक की घोर लापरवाही और स्थानीय प्रशासन की चुप्पी बताती है कि गौ-संरक्षण के दावे सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित हैं।
गौशाला संचालक की लापरवाही और प्रशासन का मौन
स्थानीय लोगों का कहना है कि गौशाला संचालक पूरी तरह से लापरवाह है और गोवंश के प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं है। सरकारी मदद और फंड होने के बावजूद, वह गौशाला की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रहा है।
यह मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब हम मध्य प्रदेश सरकार की गौ-संरक्षण की प्रतिबद्धता को देखते हैं। भाजपा शासित राज्य में गोवंश की ऐसी दुर्दशा होना सीधे तौर पर प्रशासन की कार्यशैली और निगरानी तंत्र की विफलता को उजागर करता है। सवाल यह है कि जब गौ-कल्याण के नाम पर लगातार फंड जारी किए जाते हैं, तो वह फंड आखिर कहाँ जाता है? और गौशालाओं के नियमित निरीक्षण की जिम्मेदारी किसकी है, जो इस भयावह स्थिति को नज़रअंदाज़ कर रहे थे?
स्थानीय लोगों की तत्काल और सख्त कार्रवाई की मांग
गौशाला की बदहाली और गायों के तड़प-तड़पकर मरने की घटना से आहत होकर, ग्राम उमरी के स्थानीय निवासियों ने तत्काल उच्चाधिकारियों से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
तत्काल जाँच: गौशाला में फंड के उपयोग और गोवंश की मौत के कारणों की उच्च स्तरीय जाँच तुरंत शुरू की जाए।
चारा, पानी और चिकित्सा: गौशाला में तत्काल चारा, साफ पानी और पशु चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएं ताकि बचे हुए गोवंश की जान बचाई जा सके।
जिम्मेदारों पर कार्रवाई: गौशाला के लापरवाह संचालक और निगरानी में लापरवाही बरतने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारियों पर कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी अमानवीय लापरवाही की पुनरावृत्ति न हो।
गौशाला का पुनर्गठन: गौशाला के प्रबंधन को तुरंत बदलकर किसी सक्षम और जवाबदेह संस्था या व्यक्ति को सौंपा जाए।
रीवा की यह घटना केवल एक गौशाला का मामला नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक बयानबाजी और ज़मीनी हकीकत के बीच की खाई को दर्शाती है। यदि सरकार अपने गौ-संरक्षण के वादों को लेकर गंभीर है, तो उसे इस मामले में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई करनी होगी, ताकि गौशालाओं में गोवंश का तड़पना बंद हो सके।