देश में आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को जाति जनगणना को मंजूरी दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। देश में इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है।
कैबिनेट की मंजूरी: केंद्रीय कैबिनेट ने 30 अप्रैल 2025 को देश में पहली बार जाति जनगणना को मंजूरी दी।
समयसीमा: जनगणना सितंबर 2025 से शुरू हो सकती है, और अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में उपलब्ध होंगे।
राजनीतिक पृष्ठभूमि: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर यह फैसला महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि विपक्षी दल लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं।
2011 में सामाजिक-आर्थिक गणना हुई, आंकड़े जारी नहीं
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं।
जनगणना फॉर्म: 2011 तक जनगणना फॉर्म में 29 कॉलम थे, जिनमें केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी दर्ज की जाती थी। अब अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सहित अन्य जातियों के लिए अतिरिक्त कॉलम जोड़े जाएंगे।
कानूनी बदलाव: OBC की गणना के लिए जनगणना अधिनियम 1948 में संशोधन करना होगा। इससे लगभग 2,650 OBC जातियों के आंकड़े सामने आएंगे।
2011 के आंकड़े: SC आबादी 16.6% और ST आबादी 8.6% थी। कुल 1,270 SC और 748 ST जातियां दर्ज की गई थीं।
2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना (SECC): मनमोहन सिंह सरकार ने 2011 में SECC कराई थी, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। केवल SC-ST परिवारों के आंकड़े ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
1980 के दशक में क्षेत्रीय दलों, खासकर बसपा नेता कांशीराम ने जाति-आधारित आरक्षण की मांग उठाई।
1979 में मंडल कमीशन का गठन हुआ, जिसकी सिफारिश पर 1990 में OBC को आरक्षण दिया गया।
2010 में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने मनमोहन सरकार पर दबाव बनाया, जिसके बाद SECC शुरू हुई।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने 1947 से जाति जनगणना का विरोध किया। 2010 में मनमोहन सिंह ने इस पर विचार की बात कही थी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अमित शाह ने अगस्त 2024 में कहा था कि जनगणना 2025 में हो सकती है।
राहुल गांधी: 2023 से लगातार जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। उन्होंने देश-विदेश में इस मुद्दे को उठाया।
लालू यादव: इसे विपक्ष की जीत बताया और कहा कि यह फैसला जातिवादी कहने वालों को जवाब है।
तेजस्वी यादव: इसे अपनी मांग की जीत बताया।
कांग्रेस नेता उदित राज: इसे कांग्रेस की जीत करार दिया।
चिराग पासवान: इसे समावेशी विकास के लिए ऐतिहासिक कदम बताया।
नित्यानंद राय: सरकार की विकास के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
लालू यादव- हमें जातिवादी कहने वालों को करारा जवाब मिला है।
केशव मौर्य- कांग्रेस के मुंह पर करारा तमाचा है। कांग्रेस केवल कहती है मोदी सरकार करती है। कांग्रेस पार्टी केवल ढोंग कर रही थी।
तेजस्वी यादव- यह फैसला हमारी जीत है। हमारी बात सरकार को माननी पड़ी।
कांग्रेस नेता उदित राज- यह कांग्रेस की जीत है। आखिरकार मोदी सरकार को जाति जनगणना करानी पड़ रही है।
कांग्रेस, BJD, SP, RJD, BSP, NCP (शरद पवार) जाति जनगणना के पक्ष में हैं। TMC का रुख अस्पष्ट है।
पहले भाजपा इसका विरोध करती थी और विपक्ष पर देश को बांटने का आरोप लगाती थी।
बिहार में भाजपा ने जाति जनगणना का समर्थन किया। बिहार ने अक्टूबर 2023 में जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए, जो देश में पहला ऐसा प्रयास था।
जाति जनगणना की मांग का इतिहास
1980 का दशक: क्षेत्रीय दलों ने जाति-आधारित आरक्षण की मांग शुरू की।
1990: मंडल कमीशन की सिफारिश लागू होने के बाद सामान्य वर्ग के छात्रों ने विरोध किया।
2010: OBC नेताओं ने मनमोहन सरकार पर दबाव बनाया।
2011: SECC शुरू हुई, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए।
प्रक्रिया में समय: जनगणना की प्रक्रिया में कम से कम एक साल लगेगा।
कानूनी संशोधन: OBC गणना के लिए जनगणना अधिनियम में बदलाव जरूरी है।
राजनीतिक प्रभाव: बिहार चुनाव से पहले यह फैसला जातिगत समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
विपक्षी पार्टियां: कांग्रेस समेत BJD, SP, RJD, BSP, NCP शरद पवार देश में जातिगत जनगणना की मांग कर रही हैं। TMC का रुख अभी साफ नहीं है। राहुल गांधी हाल ही में अमेरिका दौरे पर गए थे, वहां उन्होंने जातिगत जनगणना को सही बताया था।
NDA: पहले भाजपा जाति जनगणना के पक्ष में नहीं थी। NDA ने कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाए थे कि ये जातिगत जनगणना के जरिए देश को बांटने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि बिहार में भाजपा ने ही जातिगत जनगणना का सपोर्ट किया था। बिहार ने अक्टूबर 2023 में जातिगत जनगणना (सर्वे) के आंकड़े जारी किए थे। ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना था।
जातिगत जनगणना की मांग कब-कब रही
80 के दशक में जातियों पर आधारित कई क्षेत्रीय पार्टियां उभरीं। इन पार्टियों ने सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण दिए जाने को लेकर अभियान चलाया। इसी दौरान जातियों की संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग सबसे पहले UP में बसपा नेता कांशीराम ने की।
भारत सरकार ने साल 1979 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया। मंडल कमीशन ने OBC के लोगों को आरक्षण देने की सिफारिश की। इस सिफारिश को 1990 में उस वक्त के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू किया। इसके बाद देशभर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए।
साल 2010 में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव जैसे OBC नेताओं ने मनमोहन सरकार पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बनाया। इसके साथ ही पिछड़ी जाति के कांग्रेस नेता भी ऐसा चाहते थे।
मनमोहन सरकार ने 2011 में सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना यानी SECC कराने का फैसला किया।
इसके लिए 4 हजार 389 करोड़ रुपए का बजट पास हुआ। 2013 में ये जनगणना पूरी हुई, लेकिन इसमें जातियों का डेटा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।