रीवा: मिनर्वा हॉस्पिटल एक बार फिर आरोपों के कटघरे में है। मंगलवार की देर रात हुई मरीज की मौत के बाद अस्पताल में परिजनों द्वारा जमकर हंगामा किया गया और अस्पताल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए गए। बुधवार की सुबह तक हंगामे की स्थिति बनी रही। सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची सिविल लाइन पुलिस द्वारा समझाइश देते हुए मरीज के शव को पपोस्टमार्टम के लिए संजय गांधी चिकित्सालय भेजा गया। मृतक के परिजनों के आरोप अनुसार मिनर्वा अस्पताल में उपचार के नाम पर लगभग 20 लाख रुपए का बिल बनाया गया और मरीज लापरवाही की भेंट चढ़ गया।
उपचार का समयक्रम:
- लगभग एक महीने के उपचार के दौरान डॉ. जिंदल (डॉ. सोनपाल जिंदल) ने एक रात अचानक ऑपरेशन की आवश्यकता बताई और दबाव बनाया कि बिना सर्जरी के मौत हो सकती है।
- परिवार का आरोप है कि मरीज को तीन बार एनेस्थीसिया दिया गया, जो अनुचित था।
- ऑपरेशन के बाद मरीज को होश नहीं आया और कोई सुधार नहीं हुआ।
- 2 सितंबर 2025 (मंगलवार) की देर रात डॉक्टरों ने मरीज को मृत घोषित किया।
- मिनर्वा हॉस्पिटल या डॉक्टरों (जैसे डॉ. जिंदल) का कोई आधिकारिक जवाब नहीं मिल।
- परिजनों ने मृत मरीज को आईसीयू में रखकर 25 लाख वसूलने का आरोप लगाया।
- मई 2025 में एक पुलिसकर्मी की मौत के बाद पत्नी ने लाखों रुपये ऐंठने के आरोप लगाए।
परिजनों के हवाले से सामने आई जानकारी अनुसार एनपीटीसी सिंगरौली से सेवानिवृत्त हुए इंजीनियर सतना निवासी संपतलाल वर्मा को पैरालाइसिस की शिकायत होने पर 6 अगस्त को मिनर्वा हास्पिटल रीवा में उपचारार्थ भर्ती कराया गया था। लगभग एक माह चले उपचार तथा तकरीबन 20 लाख रुपए खर्च के बाद भी मरीज को बचाया नहीं जा सका। मंगलवार की देर रात डॉक्टरों ने मरीज संपतलाल को मृत घोषित कर दिया। परिजनों को मरीज की डेडबॉडी सुपुर्द करने से पूर्व लगभग 20 लाख खर्च का बिल थमा दिया गया। तद्रुपरांत मृत मरीज सहित उनके परिजनों को बाहरह का रास्ता दिखा दिया गया। बताया गया कि एनटीपीसी से इनपैनल्ड होने के कारण वे अपने मरीज को सतना से रीवा मिनर्वा हास्पिटल लाए थे। जब मरीज को लाया गया था तब उनको पैरालाइसिस का हल्का अटैक था क्योंकि उनके हाथ-पैर सहित शरीर हरकत कर रहा था।
- मृतक की पुत्री नीता ने कहा कि डॉक्टर सुधार की बात कहते रहे, जबकि नर्सिंग स्टाफ अप्रशिक्षित था। अस्पताल ने इलाज को “धंधा” बना लिया है।
- जब दूसरे अस्पताल में ट्रांसफर की बात की, तो प्रबंधन ने बिल के कागजात पर हस्ताक्षर करवाए और फिर रात में मौत घोषित की।
दबाव का आपरेशन
परिजनों (मृतक की पुत्री नीता) एवं रिश्तेदारों ने बताया कि एक दिन अचानक रात में डॉक्टरों ने आपरेशन की अनिवार्यता बताई। बोला गया कि यदि मरीज का तत्काल आपरेशन नहीं किया गया तो उसकी मौत हो सकती है। आरोप है कि डॉक्टर्स द्वारा आपरेशन के लिए काफी दबाव बनाया गया। आनन-फानन में डॉ. जिंदल द्वारा आपरेशन किया गया। आपरेशन के बाद से मरीज को होश नहीं आया और आखिरकार उनके मरीज की मौत हो गई। मरीज का समुचित उपचार नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए बताया गया कि उन्हें अंदेशा है कि उनके मरीज की मौत चार दिन पूर्व हो चुकी थी फिर भी इलाज किया जा रहा था। इस संबंध में जब डॉक्टरों से पूछा जाता था तो डॉक्टर लगातार मरीज में इम्प्रूव होने की बात कहते रहे। अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ भी प्रशिक्षित नहीं है। मरीज को जब दूसरे अस्पताल ले जाने की बात की गई तो प्रबंधन ने मरीज के परिजनों से बिल से संबंधित कागजात में दस्तखत करवाए गए और रात में मरीज को मृत करार दे दिया गया। परिजनों द्वारा जमकर हंगामा किया गया परंतु पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मामला शांत करा दिया।
तीन बार दिया गया एनेस्थीसिया
मृत मरीज की पुत्री नीता वर्मा ने बताया कि उनके मरीज को तीन-तीन बार एनेस्थीसिया दिया गया, यह कैसा ट्रीटमेंट है? उन्होंने आरोप लगाया कि मरीज की मौत के बाद भी पैसे के लिए इलाज करने का धंधा बन गया है। आपको बता दें कि मिनर्वा हॉस्पिटल में इस तरह पूर्व में कई बार हुआ है कि मरीज की मौत पर परिजनों ने हंगामा किया और डेडबॉडी का इलाज करते रहने के आरोप लगाए। परिजनों से अस्पताल प्रबंधन का विवाद आम हो चुका है। पुलिस ढाल बन जाती है। अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कोई जांच इसलिए नहीं होती है क्योंकि यह कुबेरपुत्रों का अस्पताल है। पर्दे के पीछे से कई पूंजीपतियों की साझेदारी है जिनकी शासन-सत्ता में गहरी पैठ है। संबंधित विभाग के जिम्मेदारों में इतना साहस नहीं है कि मिनर्वा हॉस्पिटल के मामले में कोई एक्शन ले सकें? मरीज के परिजनों के आरोप निराधार भी हो सकते हैं किन्तु गहन जांच का विषय है कि आखिरकार मिनर्वा अस्पताल के इलाज और प्रबंधन पर बार-बार उपचार में लापरवाही के आरोप बार-बार क्यों लगते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि सिने कलाकार अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म गब्बर इज बैंक का फार्मूला यहां भी अख्तियार किया जाने लगा है? आग बिना धुआं नहीं होता है फलतः प्रशासन को गंभीरता से इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे मामलों से शासन-प्रशासन दोनों की छवि धूमिल होती है।