नई दिल्ली। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा किए गए विस्फोटक खुलासे ने भारतीय राजनीति और लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था “भारत निर्वाचन आयोग (ECI)” की निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले, राहुल गांधी ने ‘VoteChori – The H Files’ नामक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि हरियाणा सहित कई राज्यों में मतदाता सूचियों में 25 लाख वोटों की संगठित चोरी हुई है।
इस अभूतपूर्व आरोप ने न केवल सत्तारूढ़ दल को घेरा है, बल्कि देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर मंडराते खतरे को भी उजागर किया है।
निर्वाचन आयोग पर गहराया संदेह
राहुल गांधी के आरोपों का केंद्रबिंदु वह डेटा है, जो मतदाता सूची में कथित तौर पर फर्जी, डुप्लीकेट और टारगेटेड डिलीशन (निशाना बनाकर नाम हटाना) को दर्शाता है। यह आरोप इसलिए भी अधिक गंभीर हैं क्योंकि ये सीधे तौर पर ECI की कार्यप्रणाली और उसकी निगरानी तंत्र की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।
संगठित विफलता: राहुल गांधी के अनुसार, यह ‘वोट चोरी’ व्यक्तिगत स्तर की नहीं, बल्कि एक ‘व्यवस्थित और संगठित’ प्रक्रिया है, जिसमें तकनीकी साधनों का उपयोग किया गया। यदि ये आरोप सही हैं, तो यह सीधे तौर पर ECI की डेटा सुरक्षा, सत्यापन प्रणाली (Verification System) और मतदाता सूची को त्रुटिहीन रखने की उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी की विफलता को दर्शाता है।
किसके दबाव में काम? विपक्ष का मुख्य सवाल यही है कि ECI, जिसकी स्थापना निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए हुई थी, वह किसके दबाव में काम कर रहा है? जब विपक्षी दल साक्ष्य और डेटा लेकर आयोग के पास जाते हैं, तो आयोग उन साक्ष्यों को खारिज कर देता है और आरोपों को ‘झूठा’ बताता है। इससे यह संदेह गहराता है कि कहीं आयोग राजनीतिक लाभ के लिए तो काम नहीं कर रहा है।
‘हाइड्रोजन बम’ से धमाका: राहुल गांधी के आरोपों के बाद निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल
नई दिल्ली। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा किए गए विस्फोटक खुलासे ने भारतीय राजनीति और लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण संस्था—भारत निर्वाचन आयोग (ECI)—की निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले, राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी – द एच फाइल्स’ नामक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि हरियाणा सहित कई राज्यों में मतदाता सूचियों में 25 लाख वोटों की संगठित चोरी हुई है।
इस अभूतपूर्व आरोप ने न केवल सत्तारूढ़ दल को घेरा है, बल्कि देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों पर मंडराते खतरे को भी उजागर किया है।
‘कुचलने का षड्यंत्र’: लोकतंत्र पर खतरा
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है। इस देश की पहचान ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों से है। राहुल गांधी के आरोपों ने इस गौरव पर ही सीधा प्रहार किया है।एक वोट, एक मूल्य: ‘वोट चोरी’ का अर्थ है ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के सिद्धांत को नष्ट करना। यदि फर्जी वोटों को शामिल किया जाता है या विपक्ष के मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर लोकतंत्र को कुचलने का षड्यंत्र है।
चुनावी विश्वसनीयता: जब चुनाव कराने वाली संस्था की विश्वसनीयता ही संदेह के घेरे में आ जाती है, तो चुनावी प्रक्रिया का परिणाम चाहे जो भी हो, वह जनता की नज़र में अवैध हो जाता है। यह स्थिति देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।
न्यायपालिका की खामोशी भी संदेह पैदा कर रही
इस पूरे प्रकरण में, देश की न्यायपालिका विशेषकर सुप्रीम कोर्ट की खामोशी भी संदेह पैदा कर रही है।
न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: जब देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर इतने गंभीर और डेटा-आधारित आरोप लग रहे हों, तो न्यायपालिका का सक्रिय होना और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का आदेश देना आवश्यक हो जाता है। यदि न्यायपालिका भी इन आरोपों पर ‘तटस्थता’ बनाए रखती है, तो यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की उस प्रणालीगत विफलता को दर्शाता है, जहाँ कोई भी संस्था स्वतंत्र रूप से जवाबदेह नहीं रह गई है। न्यायालय का कार्य केवल न्याय देना नहीं, बल्कि देश के संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना भी है।
आज जब देश के सबसे बड़े विपक्षी नेता ने सत्ताधारी दल पर ‘वोट चोरी’ का सीधा आरोप लगाया है, तो यह आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग तत्काल प्रभाव से पारदर्शी जाँच शुरू करे और संदेह के सभी बादलों को हटाए। लोकतंत्र को बचाने के लिए यह जरूरी है कि संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता न केवल कागज़ पर हो, बल्कि ज़मीन पर भी दिखाई दे।
