विवाह एक ऐसा बंधन होता है जिसके माध्यम से एक पक्ष कार और दूसरे पक्ष कार 2 लोग एक साथ रहकर जीवन यापन को आगे बढ़ाते हैं लेकिन कई बार ऐसी परिस्थिति आ जाती है जिसमें विवाह में कुछ खटास उत्पन्न हो जाती है और एक दूसरे को छोड़ देते हैं. लेकिन एक दूसरे को छोड़ देना विवाह विच्छेद नहीं माना जाएगा विवाह का बंधन तब तक बरकरार रहता है, जब तक कानूनी प्रक्रिया द्वारा एक दूसरे को छोड़ देने के प्रति अधिकारों और कर्तव्यों को न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया जाता है। न्यायालय में विवाह विच्छेद के लिए दावा करने के बाद शीघ्र न्याय ना मिलने के कारण पति पत्नी दोनों एक दसरे से अलग ऐसे में दोनों का अलग अलग होने पर किसी के प्रति अलग से संबंध स्थापित हो जाता है और फिर दोनों लोग संबंध स्थापित होने के बाद एक साथ रहने के लिए फैसला करते हैं लेकिन भारत में दूसरी शादी करना अपराध माना गया है और उसके लिए भारतीय दंड संहिता में दंड का भी प्रावधान दिया गया है जिससे कोई भी व्यक्ति विवाह विच्छेद होने से पहले दूसरी शादी नहीं कर सकता है।
पति पत्नी साथ नहीं रहना चाहते और अलग-अलग रहते हैं और ऐसी परिस्थिति आती है कि तलाक भी नहीं करना चाहते हैं और फिर किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम जैसे संबंध बन जाते हैं लेकिन वह विवाह नहीं कर सकते हैं क्योंकि दूसरा भी बात अपराध की श्रेणी में आता है और दूसरे विवाह से उत्पन्न संतान अवैध मानी जाती है जिसे किसी भी प्रकार की कानूनी मान्यता नहीं दी जाती है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं और दोनों ही कानूनी रूप से निर्धारित आई को पूर्ण कर लेते हैं और आपस में रहते हैं और उनका संबंध पत्नी पत्नी जैसे रहते हैं और विवाह नहीं हो पाता है इसी को लेकर भारत के उच्चतम न्यायालय कहा की लिव इन रिलेशनशिप के संबंध में अधिकार और कर्तव्य तो होते हैं।
दो बालिक पक्षकार अपनी सहमत से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं इस पर किसी भी प्रकार का अपराध नहीं माना जाएगा हाल ही में पंजाब उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विवाह के होते हुए भी लिव इन रिलेशनशिप में रहना अपराध नहीं माना जाएगा क्योंकि भारतीय कानून से जारकर्म के अपराध को शून्य कर दिया है लेकिन अगर विवाह कर लेते हैं तब यह अपराध की श्रेणी में आएगा इसी को लेकर भारत में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया है कि लिव इन रिलेशनशिप चोरी-छिपे नहीं होनी चाहिए बल्कि यह स्पष्ट रूप से होनी चाहिए जनता को यह जानकारी होनी चाहिए कि बगैर विवाह के लिव-इन में रह सकते हैं।
यदि विवाह हुए बिना लिव इन में संतान उत्पन्न होती है तो वह माता-पिता के उत्तराधिकार रहेगी लेकिन ऐसे संतान को अवैध संतान माना जाएगा और उसे अधर्मज संतान कहा जाएगा लेकिन लेकिन उसका अधिकार धरम संतान के बराबर ही होगा। पति या पत्नी एक दूसरे से अलग रह कर लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं तो कोई भी पक्ष कार हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत तलाक के लिए न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकता है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप पर किसी भी तरह का कोई भी अपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध नहीं करवाया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन में रहते हुए पक्षकारों को विवाद होने की स्थिति में बलात्कार जैसे गंभीर आरोप नहीं लगा सकते हैं इस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा बताए गए दिशा निर्देश के अनुसार होगा।