रीवा । विधानसभा चुनाव 2023 के मतों की गिनती के लिये चंद घंटे ही शेष रह गये हैं। मतदान तिथि 17 नवम्बर 23 के बाद से जीत-हार को लेकर कयासों के भंवर में डूब-उतरा रहे सियासी सूरमाओं के दिलों की धड़कन के एग्जिट पोल ने और बढ़ा दिया है। एग्जिट पोल में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सर्वे करने वाली एजेंसियों में कोई भाजपा की तो कोई कांग्रेस की सरकार बना रही है।
सियासत के समंदर में ज्वार – भाटे की तरह उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी हुई है। एग्जिट पोल से इतर अब लोगों की | टकटकी 3 दिसम्बर को ईव्हीएम से बाहर निकलने वाले जनादेश पर है। उससे पहले किसी भी अनुमान पर यकीन करना मूर्खता ही है क्योंकि एग्जिट पोल कोई अंतिम परिणाम नहीं है। कांग्रेसी इस बात को लेकर हैरान-परेशान हैं कि 30 नवम्बर के पूर्व तक प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के दिखने वाले हालात एग्जिट पोल में कैसे बदल गये हैं? कांग्रेसी उस एग्जिट पोल को सिरे से खारिज कर रहे हैं जो बहुमत के साथ भाजपा की सरकार म.प्र. में बना रहे हैं।
बनिस्बत उनके भाजपाई एक बार पुनः सत्ता में वापसी का दावा कर रहे हैं। अब किसी को ज्यादा खिच खिच और माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है क्योंकि 3 दिसम्बर को सभी को अपनी-अपनी क्षमता एवं बिसात तथा अपने सियासी पराक्रम की थाह हो जाना है। जिनका किसी दल विशेष से ताल्लुक नहीं है मगर राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, उनका मानना है कि प्रदेश में राजनीतिक स्थिति- परिस्थिति चाहे जैसी निर्मित हो किन्तु विन्ध्य के नतीजे 2018 के कमोवेश एकतरफा किसी भी दल के पक्ष में नहीं रहेंगे। रीवा जिले की ही पिछले चुनाव परिणाम को देख लिया जाय, भाजपा का कमल 8 की आठों सीट पर खिलखिलाकर खिला था ।
कांग्रेस को सूपड़ा साफ होने की उम्मीद स्वप्न में भी नहीं रही होगी। भाजपा के लोग यही मान रहे हैं कि इस बार भी कांग्रेस की जमीन खिसकी हुई है, परिवर्तन की लहर खास वर्ग की दिमागी उपज है जबकि भाजपा का जो आधार वोट है वह कहीं नहीं गया है, भाजपा के ही साथ रहा है। कांग्रेसी मुगालते में हैं। हालांकि भाजपाइयों का यह कथन कि कांग्रेस की जमीन खिसकी हुई है, सरासर बेबुनियाद है। कारण कि चुनाव के वक्त कितना जोर बाजुए प्रत्याशी में है, यह सफ समझ में आ रहा था ।
ईव्हीए से निकलने वाले वोट भी बतायेंगे कि किसका कहां कांटे का मुकाबला था ?
निःसंदेह रीवा – मऊगंज जिले की आठों विधानसभा सीटों पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा हो किन्तु तीन सीट क्रमशः सिरमौर, सेमरिया त्योंथर एवं देवतालाब में बहुजन समाज पार्टी ने सेंधमारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कहा जाता है कि दो की लड़ाई में तीसरा फायदा उठाता है तो इन सीटों पर यदि चुनावी नतीजों में कुछ ऐसा घटनाक्रम हो जाता है तो उसे अप्रत्याशित नहीं कहा जायेगा? इसी क्रम में रीवा सीट पर आम आदमी पार्टी एवं देवतालाब में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के प्रदर्शन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और न ही कमतर आंका जा सकता है।
किसकी बजेगी विजयतूर्य
गौरतलब है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में रीवा – मऊगंज जिले की 8 विधानसभा सीटों से उम्मीदवार रहे 116 लोगों की तकदीर का फैसला रविवार को होने वाला है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम एवं राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र शुक्ल समेत कई दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य ईव्हीएम में बंद है। तीन दिसम्बर को विजयतूर्य (विजय उपरांत बजाई जाने वाली तुरही) किसकी बजेगी इसका फैसला मतगणना के अंतिम परिणाम करेंगे। समस्त उम्मीदवारों के समर्थकों को अपने प्रत्याशी की जीत का आनंद लेने के लिए एक दिन का समय है, उसके बाद तो जीत काजश्न चुनावी रण के विजेता के समर्थक ही मनायेंगे।
रीवा मऊगंज जिले की कुल मतदाता संख्या 18 लाख 33 हजार 889 है। जिसमें 9 लाख 57 हजार 991 पुरुष तथा 8 लाख 75 हजार 881 महिला एवं 17 अन्य (थर्ड जेंडर) मतदाता शामिल हैं। इनमें से 6 लाख 16 हजार 224 पुरुष, 6 लाख 11 हजार 407 महिला एवं 8 अन्य समेत कुल 12 लाख 27 हजार 639 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। इस चुनाव में कांग्रेस ने तो मुख्यमंत्री का चेहरा कमलनाथ को प्रोजेक्ट कर रखा था मगर भाजपा ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था। यकीनन चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा गया किन्तु मुख्यमंत्री का चेहरा उन्हें नहीं बनाया गय।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने स्वयं मोर्चा संभाल रखा था। एग्जिट पोल में भाजपा की जीत के जो आंकड़े सामने आये हैं, अगर उस अभीष्ट की प्राप्ति भाजपा को होती है तो उसमें सरकार की लाड़ली बहना योजना का योगदान महत्वपूर्ण होगा।
महिलाओं की ज्यादा वोटिंग के मायने
उल्लेखनीय है कि चुनाव में अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों की तुलना में ज्यादा रहा। महिलाओं के बढ़े हुये वोटिंग प्रतिशत के पृथक-पृथक मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा के लोग उसे लाड़ली बहना योजना का परिणाम मान रहे हैं किन्तु दीगर दल के लोगों की इस मामले में पृथक सोच है। तर्क दिया जा रहा है कि जरूरी नहीं है कि लाड़ली बहना योजना की समस्त लाभार्थी महिलाएं सिर्फ भाजपा से जुड़ी हों? क्योंकि कांग्रेस, बसपा, सपा सहित तमाम दलों के लोगों के परिवार की महिलाओं को भी लाड़ली बहना योजना का लाभ मिल रहा है, उसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अपने घरवालों का साथ भाजपा के लिए छोड़ दिया है ?