रीवा। जिले में शराब ठेकेदारों द्वारा आबकारी विभाग में प्रस्तुत फर्जी बैंक गांरटी के मामले में लोकायुक्त भोपाल संगठन ने शिकायत रजिस्टर्ड कर ली है। साथ ही लोकायुक्त ने इस मामले में जिला सहकारी बैंक सिंगरौली व मोरवा सीइओ को जांच प्रतिवेदन और अभिलेख प्रस्तुत कराने का निर्देश दिया है।
लोकायुक्त में मामला पहुंचने के बाद आबकारी विभाग और बैंक के अधिकारियों में हड़कंप मचा हुआ है। इस मामले में शिकायत अधिवक्ता बीके माला ने लोकायुक्त में की है।
बता दें कि शराब ठेका के दौरान ठेकदारों ने सहकारी बैंक प्रबंधक से सांठगांठ कर फर्जी बैंक गांरटी प्रस्तुत कर शराब का ठेका हासिल किया था। इसका खुलासा होने के बाद संभागायुक्त व जिला सहकारी बैंक के डीआर रीवा ने जांच के आदेश दिए थे।
इस मामले में अभी तत्कालीन सहकारी बैंक प्रबंधन मोरवा नागेन्द्र सिंह को निलंबित कर दिया गया था। बावजूद अभी तक इस तरह फर्जी बैंक गांरटी बनावा कर लायसेंस लेने वाली फर्मो पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इसे लेकर लोकायुक्त संगठन को शिकायत की गई है।
इस शिकायत को लोकायुक्त संगठन ने रजिस्टर्ड कर जिला सहकारी बैंक सीइओ को नोटिस जारी कर सभी अभिलेख एवं जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को कहा है।
सात दुकानों में आ चुके फर्जी बैंक गांरटी के मामले
जिला सहकारी बैंकों से फर्जी बैंक गांरटी के आधार पर सात शराब दुकानों में ठेका हासिल करने के मामले सामने आ चुके है। इनमें शहर की इटौरा, बोदाबाग, रायपुर कर्चुलियान, गुढ़ और मनगवां के अतिरिक्त देवलोद, और सतना की शराब दुकानें शामिल है। इसमें हैरान करने वाली बात यह है कि जिला सहकारी बैंक राज्य स्तरीय बैंक होने के कारण बैंक गारंटी देने का अधिकृत नहीं है। इससे वाकिफ होने के बावजूद जिला आबकारी विभाग के अधिकारियों ने इस फॅर्जी बैंक गारंटी को स्वीकार किया है। इससे कहीं न कही इस मामले में जिला आबकारी अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
विभागीय जांच में देरी से उठ रहे सवाल
शराब ठेकेदारों की फर्जी बैंक गांरटी के मामले में संभागायुक्त ने विभागीय जांच के आदेश दिए थे, लेकिन इसमें जिला सहकारी बैंक प्रबंधक नागेन्द्र सिंह के निलंबित होने के बाद मामला ठंडे बस्तेे में चला गया है। इसके बाद इस मामले में अभी तक एफआइआर तक दर्ज नहीं हुई है। वहीं फर्मो के विरूद्ध भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
शिकायतकर्ता बीके माला ने बताया कि इस मामले अधिकारी पत्रों का जबाव नहीं दे रहे हैं। यहां तक कि लोकायुक्त भी अभिलेख को लेकर कई बार पत्राचार कर चुका है।