देशभर में कोयला संकट के चलते मध्यप्रदेश में भी बिजली संकट बढ़ता जा रहा है। गांव व शहरों में ट्रिपिंग शुरू हो गई है। वजह ये कि थर्मल बिजली के साथ दूसरी वैकल्पिक बिजली का सहारा भी काम नहीं आ रहा है। सौर ऊर्जा के बड़े-बड़े दावे भी बिजली संकट के समय खोखले साबित हुए हैं। अभी संकट के समय महज 2700 मेगावाट ही सौर ऊर्जा मिल रही है, जबकि सूबे में 11500 मेगावाट की मांग है। ऐसे में बिजली की आपूर्ति को लेकर हर दिन दिक्कतें बढ़ रही हैं। थर्मल व सौर ऊर्जा से पूर्ति नहीं होने के कारण मजबूरी में हाइडल प्लांट चलाने पड़ रहे हैं। भारी गर्मी के कारण पहले से पेयजल का संकट है, उस पर हाइडल उत्पादन से बांधों के रिजर्व पानी पर बोझ बढ़ गया है। यदि कोयले की आपूर्ति नहीं सुधरती है तो आने वाले समय में पानी की भी दिक्कत होगी।
3700 मेगावाट औसत थर्मल उत्पादन अभी प्रदेश में, 2.3लाख टन औसत कोयला बचा है
अभी ऐसा परिदृश्य
प्रदेश में वर्तमान में 11500 से 12000 मेगावाट बिजली की मांग है। गर्मी के कारण बिजली की मांग में इजाफा भी हुआ है। अभी थर्मल प्लांट से 3700 मेगावाट बिजली मिल रही है। जबकि सौर ऊर्जा प्लांट से 2700 मेगावाट बिजली मिल रही है। यह भी अभी अधिकतम की स्थिति में है। इस तरह करीब 6400 मेगावाट के बाद बाकी बिजली का इंतजाम अन्य वैकल्पिक माध्यमों से किया जा रहा है। बावजूद इसके एक से डेढ़ हजार मेगावाट का अंतर आपूर्ति व मांग में है। इस कारण अघोषित कटौती करनी पड़ रही है।
ऐसी सौर ऊर्जा की स्थिति
अभी औसत 5000 मेगावाट सौर बिजली उत्पादन का दावा किया जाता है, लेकिन करीब 2700 मेगावाट ही मिल पा रही है। बाकी निजी सेक्टर के उत्पादन हैं, जो स्वयं ही इस्तेमाल करते हैं।
वैकल्पिक सारे इंतजाम ढेर, ट्रिपिंग की प्लानिंग रिफॉर्म
सबसे बड़ी बात कि वैकल्पिक ऊर्जा व निजी खरीदी के सारे इंतजाम बिजली संकट के मौके पर ढेर हो गए हैं। निजी सेक्टर की कंपनियों ने पर्याप्त आपूर्ति में कोयला संकट के कारण असमर्थता जता दी है। वहीं एनटीपीसी के प्लांट पूरी क्षमता से उत्पादन के बावजूद पर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।
कोयले की आपूर्ति अब बेहद जरूरी
सूबे में अब करीब 2.33 लाख टन कोयला ही रिजर्व स्टॉक के तौर पर बचा है, जबकि इसे औसतन 5 लाख टन होना चाहिए। ऐसे में अब कोयले की आपूर्ति सुधारने की जरूरत है।