लोकसभा चुनाव के लिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने प्रत्याशियों की तलाश शुरू कर दी है। इसके लिए पार्टी ने सभी दावेदारों से बायोडेटा मांगे हैं। इसके साथ ही जिला संगठन से भी लोकसभा के लिए प्रत्याशियों के नाम पर सुझाव लिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं इस बार कांग्रेस अपने प्रत्याशियों का ऐलान भी जल्द से जल्द करने के मूड में है। ताकि प्रचार के लिए उन्हें भरपूर समय मिल पाए। बता दें, मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास सिर्फ एक लोकसभा सीट है जबकि भाजपा के खाते में 28 सीटें हैं। हाल ही हुई संगठन की बैठक में भी ये मांग निकलकर सामने आई थी कि लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करने में अधिक समय न लगाया जाए बल्कि चुनाव से एक महीने पर पहले ही उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया जाए ताकि उसे प्रचार के लिए पूरा समय मिल पाए। इस बैठक में प्रदेश के नव नियुक्त प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, प्रदेश पदाधिकारी, जिला अध्यक्ष और जिला प्रभारी मोजूद थे। इससे पहले विधानसभा चुनाव हारने के बाद हुई समीक्षा बैठक में भी यह बात पार्टी फोरम पर रखी गई थी।
दिग्गजों की डिमांड
प्रत्याशी चयन जल्द हो इस मांग के साथ ही दिग्गजों को मैदान में उतारने की डिमांड भी कांग्रेस में हो रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया खुद इस बात की पैरवी कर चुके हैं कि बड़े नेताओं को लोकसभा लड़ाया जाए। ऐसे में कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव 2023 में हार का मुंह देख चुके कई वरिष्ठ नेताओं को भी एक बार फिर लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है।
विधानसभा चुनाव से सबक
बता दें, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से पहले अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान किया था। इतना ही नहीं पार्टी ने कई हारी हुई सीटों पर तो आचार संहिता के पहले ही उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी थी। जबकि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस प्रत्याशी चयन में खासी पिछड़ गई थी। जिससे प्रत्याशियों को प्रचार के लिए भरपूर समय नहीं मिल पाया था। ऐसे में पार्टी लोकसभा चुनाव में ये गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसलिए पार्टी ने अभी से ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में होगा बदलाव, जिला स्तर तक होगी सर्जरी
लोकसभा चुनाव की तैयारी राजनीतिक संगठनों ने संगठन स्तर पर शुरू कर दी है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस में सर्जरी शुरू हो गई है। प्रदेश कार्यकारिणी को भंग करने के बाद नेतृत्व जिला अध्यक्षों को फिलहाल पूर्व के अनुसार कार्य करने के निर्देश दिये हैं। प्रदेश नेतृत्व के तेवरों को देखते हुए तय माना जा रहा है कि प्रदेश संगठन का कायाकल्प करने के बाद जिला स्तर पर बदलाव किया जाएगा।
यह परिवर्तन कार्यकर्ताओं को हार के सदमे से उबारने के लिए अवश्यंभावी माना जा रहा है, ताकि नए जोश और उत्साह के साथ लोकसभा चुनाव में पूरी ताकत के साथ कार्यकर्ता मोर्चा संभाल सके। पहली बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने मध्य प्रदेश की कमान युवा हाथों में सौंपी है, क्योंकि प्रदेश में पिछले 20 वर्षों से कांग्रेस सत्ता से दूर है। 2018 के विधानसभा चुनाव जैसे-तैसे कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी, क्योंकि आपसी खींचतान के कारण सत्ता की डोर कांग्रेस के हाथ फिसल गई। 2023 के विधानसभा चुनाव में समीकरण व परिस्थितियां अनुकूल होने के बाद भी कांग्रेस दो तिहाई बहुमत तक पहुंचना तो दूर 100 की संख्या को भी पार नहीं कर पाई। प्रदेश नेतृत्व में हुई परिवर्तन पर कांग्रेस विचारधारा से जुड़े लोगों का मानना है कि यह फैसला काफी समय पहले होना चाहिए था।
कांग्रेस को भाजपा से मध्यप्रदेश सीखना चाहिए कि किस तरीके से वह अपने नए चेहरों को सामने लाकर विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बना लेती है। प्रदेश कार्यकारिणी भंग होने के बाद कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं में थोड़ी सी उम्मीद जागी है। यह परिवर्तन जिला व ब्लाकस्तर पर होने की आस लगा रहा है, क्योंकि जिलों में वही पुराने चेहरे हैं। उनकी न कोई नई सोच है, और न ही पार्टी को आगे बढ़ाने का कोई जज्बा है। कांग्रेस नेताओं का भी मानना है कि परिवर्तन से संगठन में नया जोश भरा जा सकता है और नई दिशा भी दी जा सकती है।
प्रदेश संगठन में परिवर्तन की दिशा में कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़ाया है और वरिष्ठ नेता भी यह मान रहे हैं कि अब युवाओं को आगे लाना चाहिए। इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि यह परिवर्तन जिला स्तर पर भी देखने को मिलेगा। मेरा मानना है कि हमें भाजपा की नकल नहीं करनी चाहिए। हम लोग प्रदेश विधानसभा चुनाव कैसे हारे, यह गहन शोध का विषय है। प्रदेश की मतदाताओं की भावनाएं हमारे साथ थी। बगैर किसी ठोस तथ्य के कुछ भी कहना उचित नहीं है। यह बात सही है कि इन परिस्थितियों में कांग्रेस को अपनी स्वयं की लाइन मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए बनानी होगी।