रीवा। रीवा मेडिकल हब बनने की दिशा में अपने कदम बढ़ा चुका है। राजनैतिक इच्छाशक्ति पूरी शिद्दत से प्रयासरत है कि यहां के मरीजों को इलाज के लिये कहीं बाहर जाने की जरूरत ही न पड़े, हर मरीज व हर मर्ज का इलाज रीवा में ही संभव हो जाय। विकासवादी राजनैतिक सोच एवं दृढ़ इच्छाशक्ति के प्रयास से मेडिकल हब रीवा के साथ-साथ रीवा में बेहतर इलाज का सपना साकार होगा, इस बात का भरोसा लोगों में बढ़ा है।
- एसजीएमएच रीवा : जहां हर वक्त मरीजों का यमराज से होता है साक्षात्कार
- गंभीर रोगियों के मामले में गंभीर नहीं सीनियर डॉक्टर्स
- मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के भरोसे विंध्य का सबसे बड़ा अस्पताल
सरकार में रीवा की प्रभावशाली राजनैतिक भागीदारी ने लोगों के मन में विश्वास भर दिया है किन्तु विंध्य के सबसे बड़े हास्पिटल संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय की व्यवस्था लोगों के मन में बैठे विश्वास को डिगाने का कार्य कर रही है। यहां के सीनियर डॉक्टर्स जब तक व्यवस्था बनाने में सहयोग नहीं करेंगे तब तक इस अस्पताल में लापरवाही और बदइंतजामी से होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ता रहेगा। सीनियर डाक्टर्स की ड्यूटी रस्मअदायगी तक सीमित होकर रह गई है। ये तो महज नोट छापने की मशीन बन गये हैं।
पूरा अस्पताल मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों जिन्हें जूनियर डाक्टर कहते हैं, के भरोसे रहता है। सबको मालूम है कि संजय गांधी अस्पताल जो मेडिकल कालेज से सम्बद्ध है, में सर्वाधिक मरीज मेडिसिन तथा गायनी विभाग में भर्ती होते हैं। बिस्तरों से अधिक संख्या में रोगी रहते हैं वाडाँ की स्थिति के वास्तविक दर्शन किसी भी वक्त किये जा सकते हैं। अब कोई ओहदेदार पूर्व सूचना देकर निरीक्षण करने अस्पताल आयेगा या पहुंचेगा तो उसे वस्तुस्थिति का पता खाक चलेगा? विभाग के शीर्ष एवं वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक एवं उनके साथ निरीक्षण में दिखने वाले सीनियर डॉक्टर शेष समय में नजर नहीं आते हैं। उनका अधिकाधिक समय निजी चिकित्सा की दुकानों में गुजरता है। ऐन-केन-प्रकारेण सीनियरों के दीदार ओपीडी में तो हो जाते हैं किन्तु गंभीर रोगी वार्ड जहां सीनियर डॉक्टर की हर वक्त जरूरत बनी रहती है, में विशेष सिफारिशी परिस्थिति में ही पहुंचते हैं।
रात और रविवार होते हैं भयावह
अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिये रात एवं रविवार सहित अवकाश के दिन बड़े भयावह होते हैं। सीनियर डॉक्टर्स रात में इत्तेफाक से ही गंभीर रोगी वार्ड में पहुंचते हैं। जनरल वार्डों के मरीज तक दहशत में रहते हैं। अवकाश के दिवस तो सीनियर अस्पताल की तरफ निहारना तक गंवारा नहीं समझते हैं।
अधिकतर रात्रिकालीन एवं छुट्टी के दिनों में यह नौबत आ जाती है कि गंभीर रोगियों के लिये सीनियर डॉक्टर की आवश्यकता अनिवार्य बन जाती है फिर भी सीनियर नहीं पहुंचते हैं। मरीज बच गया तो अपनी किस्मत से। यदि एसजीएमएच के माथे से मौतगाह का कलंक मिटाना है तो सीनियर डॉक्टर्स की गंभीर रोगी वार्ड में तैनाती अनिवार्य कर दी जाय। रोस्टर के हिसाब से ड्यूटी का निर्धारण किया जाय।
मोबाइल पर बांटा जाता है ज्ञान
सर्वाधिक रोगियों वाले मेडिसिन विभाग में दर्जनों सीनियर डॉक्टर की पदस्थापना है। गंभीर रोगी वार्ड जहां मरीज का साक्षात्कार सीधे यमराज से होता है, कब रोगी की सांस टूट जाये, कोई नहीं जानता है। गंभीर रोगी वार्ड (आईसीयू) में मरीज का जाना ही परिजनों को भयभीत कर जाता है। अगर मरीज वेंटीलेटर पर है, तब उसकी मौत का परवाना मान लिया जाता है। यदि दो-दो घंटे मात्र सीनियर डॉक्टर्स की तैनाती गंभीर रोगी वार्ड में होने लगे तो मुमकिन है कि मौत के आंकड़े थम जायें? मौके पर सीनियर रहता नहीं है, जूनियर डॉक्टर मोर्चा संभाले रहते हैं। जूनियर डॉक्टर्स जो कब किसी मरीज एवं उनके परिजनों पर अपनी ताकत का उपयोग कर दें, यकीन करना मुश्किल होता है। सीधे मुंह बात करना उन्हें नहीं आता है।
मरीजों एवं उनके मरीजों की अस्पताल में पिटने की गारंटी रहती है। सीरियस केसों में जब जूनियर असमर्थ हो जाते हैं तब सीनियर से मोबाइल पर संपर्क कर मरीज को उसी अनुरूप ट्रीटमेंट देने की कोशिश करते हैं। मोबाइल पर सीनियर द्वारा दिया गया ज्ञान से यदि मरीज की जान बच गई तो यह उसकी खुशनसीबी है वर्ना उसका यमलोक के लिये परमिट कटना तय ही समझिये।