राजू नहीं सत्यप्रकाश श्रीवास्तव की हुई मौत, 'राजू' तो जीने का सलीका है
जो संघर्ष के दिनों में मनोबल बढ़ाएं उन्हें कभी न भूलें
आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ होगा कि अपकी आंखों से आंसू निकल रहे होंगे और फिर भी आप हंसे जा रहे होंगे। यह काम कठिन होता है, लेकिन जिसने जीवन में ऐसा करना सीख लिया, वास्तव में उसी ने जीने का सही सलीका सीख पाया। ऐसे हो लोगों में एक नाम है कानपुर की तंग गलियों से निकल कर अपने हुनर से मशहूर हुए सत्यप्रकाश श्रीवास्तव का।
बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव है। सत्यप्रकाश श्रीवास्तव का जन्म कानपुर के बाबूपुरवा में रहने वाले रमेश चंद्र श्रीवास्तव (बलई काका) के घर 25 दिसंबर 1963 को हुआ था। आज राजू की नहीं बल्कि उसी सत्यप्रकाश श्रीवास्तव की मृत्यु हुई है। क्यों कि राजू जैसी शख्सियत कभी मर नहीं सकती क्यों की वो तो जीने का एक सलीका था, जो लोगों के साथ हमेशा जीवित रहेगा।
जो लोग राजू श्रीवास्तव के करीबी थे वो उनके जीने के तरीकों से अच्छी तरह से काफी वाकिफ थे। वो नकारात्मकता को कभी पास भटकने नहीं देते थे। राजू इस कला के माहिर खिलाड़ी थे और दूसरों में भी इसमें उतारे की क्षमता थी उनमें। राजू अक्सर कहते थे, जीवन का यदि सही आनंद लेना है... तो भैया जिंदगी में जो भी नकारात्मकता है, उसे सकारात्मक सोच में बदल दो, नहीं तो जीवन जी नहीं पाओगे...। इसके साथ ही राजू ने अपने जीवन में एक और फंडा सिखाया है कि अपनी कमजोरियों और मजबूरियों को छिपाने की कोई जरूरत नहीं है, बल्कि इसे अपनी जीवन शैली का हिस्सा बना लें, इसके बाद आप देखेंगे कि यहीं बातें आपके लिए सकारात्मक रूप ले रही हैं।
राजू हमेशा यही कहते थे कि अपने काम से प्यार कीजिए, क्योंकि यही काम एक दिन आपको आपकी पहचान देगा। साथ ही इस बात का भी खयाल रखें कि आप चाहें जितने बड़े और सफल क्यों न हो जाएं अपना परिवार, अपनी जमीन, अपने मोहल्ले, अपने शहर और अपने लोगों से जुड़ाव किसी खत्म नहीं करना चाहिए। क्योंकि यही वो लोग हैं जो संघर्ष के दिनों में आपका मनोबल बढ़ाती हैं।