Anil Agarwal : पैसों की कमी हर तरफ से परेशानी मुस्किलों में मां ने पाला, बिहार से आए खाली और अब करते है अरबों रुपए का दान
कामयाब लोगों को तो सभी जानते हैं लेकिन उनके संघर्ष को कोई नहीं जानता। वेदांता रिसोर्सेज़ के चेयरमैन भी ऐसे ही सफल लोगों में से एक है। जिनकी सफलता की कहानी उन्होंने अपने संघर्षों और मुश्किलों के दम पर लिखी है।
कामयाब लोगों को तो सभी जानते हैं लेकिन उनके संघर्ष को कोई नहीं जानता। वेदांता रिसोर्सेज़ के चेयरमैन भी ऐसे ही सफल लोगों में से एक है। जिनकी सफलता की कहानी उन्होंने अपने संघर्षों और मुश्किलों के दम पर लिखी है।
कुछ सपने लेकर आये थे मायानगरी
आपको बता दें कि जब वह बिहार से मुंबई के लिए निकले थे तो उनके पास सिर्फ एक बेड और एक टिफिन बॉक्स था। मायानगरी में बिना किसी मदद के रहना बहुत मुश्किल था, कहा जाता है कि उन्होंने 15 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी और 19 साल की उम्र में वे मुंबई आ गए थे. उन्होंने तय कर लिया था कि जब तक वो कुछ कर नहीं लेंगे तब तक वापस नहीं जाएंगे।
जब अनिल अग्रवाल मुंबई पहुंचे तो माया नगरी को देखकर चौंक गए और उन्होंने सड़क पर दौड़ती टैक्सियों को देखा, जो काली पीली सी दिख रही थी। फिल्मों से बाहर रियल लाइफ में पहली बार उन्होंने कुछ ऐसा देखा था।वो मुंबई का यह दृश्य देखते ही चकाचौंध रह गये और उन्होंने सोचा कि यहाँ अपनी क़िस्मत आज़मानी तो बनती ही है।
छोटी सी दुकान से अरबों का सफ़र
अनिल अग्रवाल ने बिहार से मुंबई आने के बाद एक छोटी सी दुकान से शुरुआत की, उसके बाद उन्होंने भोईवाड़ा के मेटल मार्केट में 8x9 का एक ऑफिस किराए पर लिया, उन्होंने यहां मेटल स्के कबाड़ बेचने शुरू किए, इस छोटी सी दुकान के कारण आज वे भारत के सबसे अमीर लोगों में से एक हैं। आज वेदांता रिसोर्सेज न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपना काम कर रही है, यह कंपनी अफ्रीका, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में अपना कारोबार कर रही है। आपको बता दें कि अनिल अग्रवाल ने एक छोटी सी दुकान बढ़ाकर अपनी मार्केट कैपिटलाइज़ेशन 1.4 लाख करोड़ रुपए कर ली है। वहीं कंपनी में 65000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल उनकी संपत्ति 3.6 बिलियन डॉलर बताई जा रही है।
माँ ने किया था बहुत संघर्ष
आपको बता दें कि अनिल अग्रवाल का सिर्फ युवावस्था ही नहीं बल्कि उनका बचपन भी काफी संघर्ष में बीता, उनकी मां ने उनके बचपन में काफी संघर्ष किया, उनकी मां को चार बेटे पालने के लिए सिर्फ ₹400 मिलते थे, जबकि उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं थी कि वो कैसे अपना पेट पालेगी । कभी-कभी वह भूखी भी सो जाती थी ।लेकिन आज उसने अपने बेटे को इतना कामयाब बना दिया कि आज वह न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा है, बल्कि कोरोना काल में लाखों गरीबों की मदद करते हुए 150 करोड़ रुपये की राशि भी दान की थी।