First IAS officer of India : जानिए कौन थे भारत के सबसे पहले आईएएस ऑफिसर
देश के सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी की तैयारी करने के बाद और उसे पार करने के बाद कोई भी व्यक्ति आईएस ऑफिसर बनता है। इस परीक्षा को देशभर में कई लोग देते हैं, लेकिन उसके बावजूद केवल कुछ ही बच्चे हैं जो इसमें सफलता हासिल कर पाते हैं। यकीनन यह काफी मुश्किल परीक्षा होती है। साथ ही इसे पार करना काफी जटिल होता है कड़ी परिश्रम के बाद ही कोई भी विद्यार्थी इस परीक्षा को पास कर पाता है।
Wed, 8 Mar 2023
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देश के सबसे कठिन परीक्षा यूपीएससी की तैयारी करने के बाद और उसे पार करने के बाद कोई भी व्यक्ति आईएस ऑफिसर बनता है। इस परीक्षा को देशभर में कई लोग देते हैं, लेकिन उसके बावजूद केवल कुछ ही बच्चे हैं जो इसमें सफलता हासिल कर पाते हैं। यकीनन यह काफी मुश्किल परीक्षा होती है। साथ ही इसे पार करना काफी जटिल होता है कड़ी परिश्रम के बाद ही कोई भी विद्यार्थी इस परीक्षा को पास कर पाता है।
आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले हैं। देश के प्रथम आईएएस ऑफिसर की जिन्होंने देश का नाम रोशन किया बल्कि अंग्रेजों को पीछे भी छोड़ा।आपको बता दें कि देश के प्रथम आईएएस ऑफिसर सत्येंद्र नाथ टैगोर थे।सत्येंद्र नाथ टैगोर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के भारतीय बंगाली सिविल सेवक से साथ ही एक कवि संगीतकार लेखक समाज सुधारक और भाषा विद भी थे।
बता दे कि वह पूरे देश के पहले भारतीय थे जिन्होंने 1863 में भारतीय सिविल सेवा अधिकारी की परीक्षा निकाली और सिविल सेवा में गए।जैसा कि आप जानते ही होंगे कि सत्येंद्र नाथ टैगोर के समय देश आजाद नहीं हुआ था और उस समय अंग्रेजों का शासन था,अंग्रेजों ने यह नियम बनाया था कि जो भी कैरेट सिविल सर्विस के लिए सिलेक्ट किया जाता है, उन्हें ट्रेनिंग के लिए लंदन के हेलिबरी कॉलेज में भेजा जाता था।
अंग्रेजों ने यह नियम बना रखा था कि सभी सिविल सर्वेंट्स को कंपनी के डायरेक्टर द्वारा नामित किया जाएगा। इसके बाद इस प्रक्रिया पर सवाल उठाने लगे। लोग जिसके बाद ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाले रिपोर्ट में यह प्रस्ताव पेश किया गया कि भारत में भी सिविल सर्विसेज सिलेक्शन के लिए मेरिट बेस एग्जाम कराई जाएगी।
इस सिफारिश के बाद 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया जिसके बाद परीक्षा की शुरुआत हो गई। उसके बाद भारत में भी सिविल सर्वेंट बनने के लिए परीक्षा की शुरुआत की गई।इस परीक्षा के लिए अधिकतम आयु 23 साल और न्यूनतम आयु 18 साल रखी गई खासकर भारतीयों को फेल कराने के लिए भी अलग से सिलेबस तैयार किए जाते थे।अंग्रेज बिल्कुल नहीं चाहते थे कि कोई भी सिविल सर्वेंट इंडियन हो। इसके लिए बेस्ट लेबस तो खतरनाक तैयार करते ही थे। साथ यूरोपियन क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर दिए जाते थे।
लेकिन अंग्रेजों की योजना जल्द ही नाकाम रही क्योंकि 1864 में पहली बार भारत के एक व्यक्ति जिनका नाम सत्येंद्र नाथ टैगोर था। उन्होंने सिविल सर्विसेज का एग्जाम क्लियर किया और आईएएस ऑफिसर बने।बता दे कि सत्येंद्र नाथ टैगोर रविंद्र नाथ टैगोर के भाई थे। इसके बाद कई भारतीय सिविल सर्विसेस के एग्जाम पास करने लगे, जिसके बाद से धीरे-धीरे करते-करते कई भारतीय एग्जाम पास करके आईएएस ऑफिसर बन गए। इस प्रकार सत्येंद्र नाथ टैगोर देश के प्रथम आईएएस ऑफिसर बने और उन्होंने देश का नाम ही केवल रोशन नहीं किया बल्कि अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया।