नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऑनलाइन अश्लील और यौन रूप से स्पष्ट कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ प्रमुख ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, ALT बालाजी, उल्लू डिजिटल, मुबी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे एक्स कॉर्प, गूगल, मेटा इंक (फेसबुक और इंस्टाग्राम) और एप्पल को नोटिस जारी किया। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा अहम है, लेकिन यह कार्यपालिका और विधायिका के दायरे में आता है।
याचिका में क्या है मांग?
पांच याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर इस PIL में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह ऑनलाइन अश्लील, यौन रूप से स्पष्ट, और सामाजिक रूप से हानिकारक कंटेंट पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाए। याचिकाकर्ताओं ने एक राष्ट्रीय कंटेंट नियंत्रण प्राधिकरण (National Content Control Authority) के गठन का प्रस्ताव रखा, जो ऑनलाइन कंटेंट को नियंत्रित और प्रमाणित करे, जैसा कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) फिल्मों के लिए करता है। याचिका में दावा किया गया है कि अनियंत्रित कंटेंट, खासकर OTT और सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री, युवाओं और बच्चों के दिमाग को “प्रदूषित” कर रही है, जिससे अपराध दर में वृद्धि और सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ OTT प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी सामग्री प्रसारित की जा रही है, जो “बाल पोर्नोग्राफी” की श्रेणी में आ सकती है। उन्होंने कहा कि बच्चों और युवाओं के लिए ऐसी सामग्री तक बिना किसी प्रतिबंध के पहुंच खतरनाक है और यह सार्वजनिक सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करती है। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने दो विशेष समितियों के गठन की मांग की है: एक समिति, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज करें, डिजिटल कंटेंट की जांच और प्रमाणन के लिए; और दूसरी समिति, जिसमें मनोवैज्ञानिक और विशेषज्ञ शामिल हों, जो अश्लील कंटेंट के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभावों का अध्ययन करे।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, “हम पर पहले ही कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया जा रहा है।” उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर कुछ करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि यह मुद्दा गंभीर है, लेकिन यह नीतिगत मामला है, जिस पर केंद्र सरकार को निर्णय लेना होगा। जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन से कहा कि वे अपनी याचिका की कॉपी केंद्र को दें, ताकि सरकार इस पर विचार कर सके।
पहले भी उठ चुका है यह मुद्दा
यह पहली बार नहीं है जब OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठा है। अप्रैल 2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने एक अन्य PIL पर सुनवाई की थी, जिसमें OTT प्लेटफॉर्म्स पर अनुचित कंटेंट के प्रकाशन को चुनौती दी गई थी। उस समय कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सरकार के समक्ष प्रतिनिधित्व करने की सलाह दी थी। अक्टूबर 2024 में, पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने OTT कंटेंट के लिए एक नियामक बोर्ड के गठन की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था।
इसके अलावा, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने मार्च 2024 में 18 OTT प्लेटफॉर्म्स, 19 वेबसाइट्स, 10 ऐप्स और 57 सोशल मीडिया अकाउंट्स को अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट के लिए ब्लॉक कर दिया था। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तब कहा था कि प्लेटफॉर्म्स को “रचनात्मक अभिव्यक्ति” के नाम पर अश्लीलता और अश्लील कंटेंट को बढ़ावा देने से बचना चाहिए।
एक्स पर इस मुद्दे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। एक यूजर ने लिखा, “OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट को नियंत्रित करना जरूरी है, खासकर बच्चों की सुरक्षा के लिए।” वहीं, कुछ यूजर्स ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। एक अन्य यूजर ने लिखा, “नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म्स को CBFC जैसे सेंसरशिप की जरूरत नहीं, बल्कि बेहतर पैरेंटल कंट्रोल की जरूरत है।”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य पक्षों से जवाब मांगा है, जिसके बाद इस मामले में अगली सुनवाई होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक नैतिकता के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। जहां एक ओर याचिकाकर्ता सख्त नियमों की मांग कर रहे हैं, वहीं OTT और सोशल मीडिया कंपनियां स्व-नियमन की वकालत करती रही हैं। इस मामले का परिणाम भारत में डिज डिजिटल कंटेंट के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।